हमीरपुर। उत्तर प्रदेश स्थित हमीरपुर में एक अनोखा मामला इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। राठ कोतवाली क्षेत्र के दादा गार्डन में हाल ही में हुई एक शादी में दूल्हे को उसके दोस्तों ने स्टेज पर नीला ड्रम गिफ्ट कर सबको चौंका दिया। यह गिफ्ट न सिर्फ शादी समारोह में आए लोगों के लिए चौंकाने वाला था, बल्कि सोशल मीडिया पर भी इस घटना के फोटो और वीडियो वायरल हो गए।
नीले ड्रम को गिफ्ट करना सुनने में भले मज़ाक जैसा लगे, लेकिन इसकी पृष्ठभूमि गंभीर है। दरअसल, वर्ष 2025 में उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में बहुचर्चित सौरभ हत्याकांड में एक युवक की लाश के टुकड़ो को नीले प्लास्टिक ड्रम में बंद कर के रखा गया था। इस मामले ने पूरे देश को हिला दिया था। तब से लेकर नीला ड्रम एक डर और चर्चा का प्रतीक बन चुका है।
- अब बना ‘ट्रेंड’ या मज़ाक?
हमीरपुर की यह घटना बताती है कि किस तरह एक खौफनाक घटना को कुछ लोग अब मजाक या ट्रेंड के तौर पर ले रहे हैं। शादी के दौरान दोस्तों द्वारा दूल्हे को नीला ड्रम गिफ्ट करने की हरकत को कुछ लोगों ने हल्के-फुल्के मज़ाक के रूप में लिया, लेकिन कई लोगों ने इसे एक असंवेदनशील कदम बताया।
स्थानीय लोगों का कहना है कि सौरभ हत्याकांड जैसी घटनाएं भुलाए नहीं जातीं और उससे जुड़े प्रतीकों से मजाक करना पीड़ितों के प्रति संवेदनहीनता दिखाता है। वहीं कुछ युवाओं का मानना है कि यह सिर्फ एक मज़ाक है और इसका मतलब किसी को ठेस पहुंचाना नहीं था।
- सौरभ हत्याकांड क्या था?
मेरठ निवासी सौरभ नामक युवक की हत्या करके उसकी लाश के टुकड़ो को नीले प्लास्टिक ड्रम में बंद कर के रखा गया था। दरअसल यह हत्या किसी और ने नहीं बल्कि सौरभ की पत्नी मुस्कान ने ही अपनी प्रेमी साहिल के साथ मिलकर की थी और शव के टुकड़े कर उसे ड्रम में डालकर उसके ऊपर सीमेंट का घोल डाला गया था ताकि बॉडी की पहचान छुपाई जा सके। हालाकि आरोपी पत्नी मुस्कान और प्रेमी साहिल दोनों जेल में है लेकिन नीले ड्रम का ख़ौफ़ आज भी कायम है।
- पुलिस और प्रशासन को चाहिए सतर्कता
अब जब नीला ड्रम एक तरह से प्रतीक बन चुका है, तो किसी भी सार्वजनिक या सामाजिक आयोजन में इसे लेकर मजाक उड़ाना विवाद और असहजता की स्थिति पैदा कर सकता है। समाजशास्त्रियों का मानना है कि इस तरह की घटनाएं संवेदनशीलता और सामाजिक जिम्मेदारी पर सवाल उठाती हैं।
हमीरपुर की यह घटना एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर करती है कि सोशल मीडिया और वायरल ट्रेंड के चक्कर में कहीं हम अपनी संवेदनाओं को तो नहीं खोते जा रहे?
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