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Sunday, March 2, 2025

समाज को बिखराव से बचाना आर्य समाज का मुख्य उद्देश्य है-ओम प्रकाश आर्य


बस्ती।आर्य समाज नई बाजार बस्ती के साप्ताहिक सत्संग में उपस्थित लोगों ने वैदिक यज्ञ कर ईश्वर से समाज के कल्याण की कामना की। इस अवसर पर ओम प्रकाश आर्य प्रधान आर्य समाज नई बाजार बस्ती ने जिले में बढ़ते ईसाइयत के प्रचार पर चिन्ता जाहिर करते हुए प्रशासन से संज्ञान लेकर कार्यवाही करने का अनुरोध किया। उन्होंने बताया कि कि ईसाई मिशनरियां एक सोची समझी नीति के अनुसार जिले के भोले भाले गरीब दलित परिवारों को असाध्य रोगों को दूर करने, पैसे देने, पढ़ाई कराने, विवाह और नौकरी का लालच देकर उन्हें ईसाई बनाने का कुचक्र चल रहा है। चंगाई सभा के आयोजनों से ये लोग आम जनता को उनके सनातन धर्म से दूर करके धर्मांतरित कर रहे हैं। ऐसे में उन्होंने लोगों से अपने वैदिक संस्कारों को अपनाने का सुझाव दिया। उन्होंने बताया कि ऊपर से देखने पर ईसाई मत एक सभ्य, सुशिक्षित,शांतिप्रिय समाज लगता हैं। जिसका उद्देश्य ईसा मसीह की शिक्षाओं का प्रचार प्रसार एवं निर्धनों, दीनों की सेवा-सहायता करना हैं। लेकिन धरातल पर इसका ठीक उलटा है। यह कटु सत्य है कि ईसाई मिशनरी विश्व के जिस किसी देश में गए। उस देश के निवासियों के मूल धर्म में सदा खामियों को प्रचारित करना एवं अपने मत को बड़ा चढ़ाकर पेश करना ईसाईयों की सुनियोजित नीति रही हैं। इस नीति के बल पर वे अपने आपको श्रेष्ठ एवं सभ्य तथा दूसरों को निकृष्ट एवं असभ्य सिद्ध करते रहे हैं। मदर टेरेसा, सिस्टर अलफोंसो, बैनी हिन्न, पोप जॉन पॉल जैसे लोग जो स्वयं किसी न किसी गंभीर रोग से पीड़ित थे और अपना इलाज विदेश जाकर करवाते रहे हैं वो आज संत हैं और उनका नाम लेकर चमत्कारपूर्वक लोगों असाध्य रोगों को जड़ से ठीक करने के दावे किए जा रहे हैं। ऐसे में हमें उनके इन षड्यंत्रों को समझना होगा और इससे बचने बचाने के उपाय करने होंगे।  समाज को बिखराव से बचाना आर्य समाज का मुख्य उद्देश्य है। वे यह भी बताते हैं कि प्रभु यीशु उनके समस्त पापों को क्षमा कर देते हैं जबकि वैदिक धर्म यह बताता है कि किए गए कर्मों का फल अवश्य मिलता है। पहले तो वे लोगों को बताते हैं कि वहां भेदभाव नहीं होता पर भारतीय चर्च भी अब यह स्वीकार करता है कि एक करोड़ 90 लाख भारतीय ईसाइयों का लगभग 60 प्रतिशत भाग भेदभावपूर्ण व्यवहार का शिकार है। उसके साथ दूसरे दर्जे के ईसाई जैसा अथवा उससे भी बुरा व्यवहार किया जाता है। दक्षिण में अनुसूचित जातियों से ईसाई बनने वालों को अपनी बस्तियों तथा गिरिजाघर दोनों जगह अलग रखा जाता है। उनकी 'चेरी' या बस्ती मुख्य बस्ती से कुछ दूरी पर होती है और दूसरों को उपलब्ध नागरिक सुविधओं से वंचित रखी जाती है। चर्च में उन्हें दाहिनी ओर अलग कर दिया जाता है। उपासना (सर्विस) के समय उन्हें पवित्र पाठ पढऩे की अथवा पादरी की सहायता करने की अनुमति नहीं होती। बपतिस्मा, दृढि़करण अथवा विवाह संस्कार के समय उनकी बारी सबसे बाद में आती है। नीची जातियों से ईसाई बनने वालों के विवाह और अंतिम संस्कार के जुलूस मुख्य बस्ती के मार्गों से नहीं गुजर सकते।
 इस अवसर पर उपस्थित लोगों ने अपने स्तर से लोगों को इनके चंगुल में फंसने से बचने का संकल्प लिया। कार्यक्रम में मुख्य रूप से नितीश कुमार, शिव श्याम, विश्वनाथ, नवल किशोर चौधरी, राम मोहन पाल,मनोज कुमार गुप्ता, सचिन सोनी, गणेश आर्य, राधेश्याम आर्य, वंश, रोली, अंश कुमार, कृष्णा, सुमित कुमार, राधा देवी, महिमा आर्य, राजेश्वरी, रिमझिम, परी, पुनीत राज सहित अनेक लोग उपस्थित रहे।

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