बस्ती। साहित्यिक संस्था शव्दांगन द्वारा होली के उपलक्ष्य में दीपक सिंह ‘प्रेमी’ के संयोजन में भारतीय शिशु विद्यालय राजा मैदान के परिसर में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि डा. वी.के. वर्मा ने कहा कि होली पर्व का रचना संसार से बड़ा निकट का रिश्ता है। फाग और जोगीरा परम्परा का आरम्भ और विकास रचनाकारों के माध्यम से हो रहा है। अध्यक्षता करते हुये वरिष्ठ कवि डा. रामकृष्ण लाल ‘जगमग’ ने कहा कि होली पर भारतीय साहित्य में कविताओं की सुदीर्घ परम्परा है। संचालन अजय श्रीवास्तव ‘अश्क’ ने किया।
श्रुति त्रिपाठी द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से आरम्भ कवि सम्मेलन में डा. रामकृष्ण लाल ‘जगमग’ ने कुछ यूं कहा ‘ होली के दिन भंग पी, झूम रहे घनश्याम, राधा से कहने लगे, अम्मा तुम्हें प्रणाम’। डा. वी.के. वर्मा की पंक्तियां ‘ एक प्रेमिका के संग, खेल रहा था रंग, तब तक पत्नी आ गयी, हुआ रंग में भंग, पर ठहाके लगे। विनोद उपाध्याय हर्षित की रचना ‘ प्यार की हर कड़ी समझते हैं, कृष्ण की बासुरी समझते हैं’ को सराहा गया। नेहा मिश्रा की कविता- ‘दे दिया सर्वस्व अपना कितना बेबश बाप होगा, कह रहे हाथों के कंगन, भाग्य पर अभिशाप होगा’ के द्वारा विसंगतियों को स्वर दिया। दीपक सिंह ‘प्रेमी’ ने कुछ यूं कहा- रंग तुझको लगाने की जिद है मेरी, मांग तेरी सजाने की जिद है मेरी’ को श्रोताआंें ने सराहा। कवि सम्मेलन में विवेक कौटिल्य, हरिकेश प्रजापति, जगदम्बा प्रसाद ‘भावुक’ गौरव त्रिपाठी आदि की रचनायें सराही गई। रोली सिंह ने होली की परम्परा पर प्रकाश डाला।
इस अवसर पर आशुतोष सिंह टोनी’ इमरान अली, आनन्द, राजेश कुमार, विजयनाथ तिवारी, विपिन कुमार, दिनेश यादव, वृजेश कुमार,विपिन, डा. प्रमोद, के साथ ही बड़ी संख्या में श्रोता उपस्थित रहे।
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