लखनऊ। भाजपा के जिला व महानगर अध्यक्षों के नामों की घोषणा रविवार को हर जिले में होगी। भाजपा के प्रदेश चुनाव प्रभारी डा. महेंद्र नाथ पांडेय ने इस संबंध में विस्तृत आदेश जारी किए हैं। लखनऊ व गाजियाबाद जहां जिला और महानगर कार्यालय अलग-अलग हैं वहां पर नामों की घोषणा के लिए दो अलग-अलग कार्यक्रम होंगे। शेष जिलों में एक ही कार्यक्रम होंगे।
जिला व महानगर अध्यक्षों की घोषणा के लिए जिलो में दोपहर दो बजे से बैठक बुलाने को कहा गया है। भाजपा के प्रदेश चुनाव प्रभारी डा. महेंद्र नाथ पांडेय ने शनिवार को नामों की घोषणा के लिए जिलों में आयोजित किए जाने वाले कार्यक्रमों के संबंध में विस्तृत दिशा निर्देश जारी किए हैं।
- लखनऊ-गाजियाबाद के नामों की नहीं होगी घोषणा
जिसमें उन्होंने कहा है कि लखनऊ व गाजियाबाद को छोड़कर सभी जिलों में नामों की घोषणा के लिए दोपहर दो बजे बैठक होगी। इन बैठकों में जिले के सभी पदाधिकारी, वरिष्ठ मोर्चा पदाधिकारी, जिले में रहने वाले राष्ट्रीय, प्रदेश व क्षेत्र के पदाधिकारी, मंडल अध्यक्ष व जिला प्रतिनिधी उपस्थित रहेंगे। मंच पर पर्यवेक्षक, जिला चुनाव अधिकारी, वरिष्ठ पदाधिकारी और मंत्रीगण रहेंगे। वर्तमान और निवर्तमान जिला अध्यक्षों को भी इस कार्यक्रम में आमंत्रित किया जाएगा।
डॉ. पांडेय ने निर्देश दिए हैं कि मौजूदा और पूर्व अध्यक्षों की उपस्थिति में ही नामों की घोषणा की जाए। नए अध्यक्ष का स्वागत स्वस्थ माहौल में किया जाए।
जिला व महानगर अध्यक्षों के नामों की घोषणा जिलों में ही करने का यह प्रयोग भाजपा ने पहली बार किया है। इससे पहले नये अध्यक्षों के नामों की सूची जारी होती थी। जिला व महानगर अध्यक्ष के नामों की घोषणा के लिए बैठक भले ही दो बजे से है लेकिन जिला व महानगर अध्यक्ष जो बनाए जा रहे हैं उनके पास पहले ही फोन चला जाएगा।
गौरतलब है कि प्रदेश में भाजपा के 98 संगठनात्मक जिले हैं। बताया जाता है कि अध्यक्ष के नाम पर सहमति नहीं बन पाने की वजह कुछ जिलों के जिलाध्यक्ष व महानगर अध्यक्ष की घोषणा बाद में हो सकती है।
- डेढ़ वर्ष में ही हटने का दंश सहना पड़ेगा
पूरे कानपुर बुंदेलखंड क्षेत्र में डेढ़ वर्ष पहले ही 17 में से 13 जिलाध्यक्षों को बदला गया था। कानपुर में तो तीनों ही जिलाध्यक्ष बदल दिए गए थे। उत्तर में सुनील बजाज की जगह दीपू पांडेय, दक्षिण में वीना आर्या की जगह शिवराम सिंह और ग्रामीण में कृष्ण मुरारी की जगह दिनेश कुशवाहा को लाया गया था। इसके बाद इन्हें लोकसभा चुनाव में उतरना पड़ा था।
हालांकि पूरे प्रदेश में परिणाम बहुत अच्छे नहीं रहे लेकिन यहां पार्टी ने कानपुर और अकबरपुर दोनों ही संसदीय सीटें जीत लीं। चुनाव के बाद ही संगठनात्मक चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई थी, जिसमें पहले सदस्यता अभियान चलाया गया। इसके बाद बूथ व मंडल के चुनाव कराए गए। उत्तर जिले को तो इसी बीच सीसामऊ विधानसभा क्षेत्र में उप चुनाव भी देखना पड़ा। इन तीनों जिलों के अध्यक्षों को अभी डेढ़ वर्ष से कुछ अधिक का ही समय हुआ है लेकिन इनके ऊपर हटाए जाने की तलवार लटक रही है।
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