बस्ती। जब तक ईश्वर से जीव की मैत्री नहीं हो जाती जीवन सफल नहीं होता। जनम-जनम मुनि जतन कराही। अन्त राम कहि आवत नाहीं।। साधारण मनुष्य और परमात्मा में यही अन्तर है कि परमात्मा जिसे मारते हैं उसे तारते भी हैं। श्रीराम अति सहज है। निर्मल मन जन सो मोहि पावा। मोहि कपट छल छिद्र न भावा।। रावण एक प्रवृत्ति है। उसके अंत के लिये श्रीराम की शरण लेना पड़ता है। वे शरणागत की रक्षा करते हैं। रावण के अत्याचारों से त्रस्त होकर विभीषण जब श्रीराम के शरण में आये तो उन्होने विभीषण को गले लगा लिया। यह सद् विचार कथा व्यास स्वामी स्वरूपानन्द जी महाराज ने नारायण सेवा संस्थान ट्रस्ट द्वारा आयोजित 9 दिवसीय संगीतमयी श्रीराम कथा का दुबौलिया बाजार के राम विवाह मैदान में आठवें वे दिन व्यक्त किया।
महात्मा जी ने कहा कि राम वियोगी का जीवन कैसा होना चाहिये इसका आदर्श जगत के समक्ष भरत ने प्रस्तुत किया। ‘‘सुनहुं उमा ते लोग अभागी। हरि तज होहिं विषय अनुरागी।। कृष्ण और काम, राम और रावण एक साथ नहीं रह सकते। रामचन्द्र जी ने सुग्रीव को अपना मित्र बनाया क्योंकि सुग्रीव को हनुमान जी ने अपनाया है। ईश्वर के साथ प्रेम करना है तो दूसरों का प्रेम छोड़ना पड़ेगा।
श्रीराम कथा के आठवें दिन कथा व्यास का विधि विधान से मुख्य यजमान अजय सिंह, विभा सिंह ने कथा व्यास का पूजन किया। आयोजक बाबूराम सिंह, राजेश मणि त्रिपाठी, हीरा सिंह, राजेश सिंह, अमरजीत सिंह, हरिओम पाण्डेय, राम प्रकाश सिंह उर्फ नन्हें सिंह, अशोक सिंह, हरिशंकर उपाध्याय, रणजीत सिंह, गोरखनाथ सोनी, नीरज गुप्ता, घनश्याम पाण्डेय, शेर बहादुर सिंह, बब्लू पाण्डेय, कन्हैया दास, राजननरायन पाण्डेय, सत्यनरायन द्विवेदी, राधेश्याम, सभाजीत चौधरी, विश्वम्भर, गोविन्द मोदनवाल, दुर्गा प्रसाद गुप्ता, श्यामलाल गुप्ता, दंगल गुप्ता, रामकिंकर सिंह, संजीव सिंह, सुनील सिंह, जसवन्त सिंह, अनूप सिंह, प्रमोद पाण्डेय, हर्षित सिंह, आदित्य सिंह, अरूण सिंह, मनोज गुप्ता, देवनरायन चौहान, दयाराम सोनकर, प्रभाकर सिंह, सुधाकर सिंह, अमरपाल सिंह, सुरेन्द्र बहादुर सिंह, नीरज गुप्ता, रामू, इन्द्रपरी सिंह, शीला सिंह के साथ ही बड़ी संख्या में क्षेत्रीय नागरिक श्रीराम कथा में शामिल रहे।
No comments:
Post a Comment