बस्ती। भक्ति के मार्ग में अहंकार का कोई स्थान नही है। भक्त का जिस रूप में समर्पण होगा उसे परमात्मा की छवि उसी अनुरूप दिखायी पड़ेगी। जीवन के जो चारो घाट और दिशायें हैं उसमें श्रीराम कथा की मानस गंगा प्रवाहित है। यह सद् विचार कथा व्यास स्वामी स्वरूपानन्द जी महाराज ने नारायण सेवा संस्थान ट्रस्ट द्वारा आयोजित 9 दिवसीय संगीतमयी श्रीराम कथा में दुबौलिया बाजार के राम विवाह मैदान में दूसरे दिन व्यक्त किया।
सती प्रसंग, दक्ष यज्ञ विधंवस के अनेक प्रसंगो की भक्तिमय व्याख्या करते हुये महात्मा जी ने कहा कि शिव आराधना की उपेक्षा का फल दक्ष को मिला। कथा श्रवण के लाभ, जीव के शिव तत्व में विलय होने और श्रीराम जन्म की पृष्टिभूमि बनाते हुये महात्मा जी ने कहा कि भक्ति की पूर्णता तो भाव में है। कहा कि कथा की सार्थकर्ता है कि जीव की व्यथा दूर हो। मानस में संसार का ऐसा कोई प्रश्न नही जिसका समुचित उत्तर निहित न हो। श्रीराम कथा से जीवन सुधरता है और कुविचार के स्थान पर सुविचार का जन्म होता है। समय, सम्पत्ति और शक्ति का जो सदुपयोग करे वह देवता और दुरूपयोग करने वाला दैत्य है। कथा को विस्तार देते हुये कथा व्यास ने कहा कि रामचन्द्र की मर्यादा का पालन करने से मन का रावण मरता है।
महात्मा जी ने जीवन के विविध प्रसंगो से कथा को जोड़ते हुये कहा कि परमात्मा सत्कर्म में सहायक होते हैं। ईश्वर की धर्म मर्यादा का उल्लंघन करने पर भक्ति सफल नहीं हो सकती। परमात्मा स्वयं कहते हैं तप और विद्या अति उत्तम है, उसे यदि विनय, विवेक का सहारा न मिले तो व्यर्थ है। यदि भक्ति शुद्ध है तो ज्ञान और वैराग्य दौड़े-दौड़े आयेंगे।
श्रीराम कथा के दूसरे मुख्य यजमान अजय सिंह, विभा सिंह ने कथा व्यास का पूजन किया। आयोजक बाबूराम सिंह, अनिल सिंह, कन्हैया दास, राजननरायन पाण्डेय, सत्यनरायन द्विवेदी, राधेश्याम, सभाजीत चौधरी, जीत बहादुर सिंह, विश्वम्भर, दुर्गा प्रसाद गुप्ता, श्यामलाल गुप्ता, दंगल गुप्ता, रामकिंकर सिंह, संजीव सिंह, सुनील सिंह, जसवन्त सिंह, अनूप सिंह, प्रमोद पाण्डेय, हर्षित सिंह, आदित्य सिंह, अरूण सिंह, मनोज गुप्ता, देवनरायन चौहान, नीरज गुप्ता, रामू, इन्द्रपरी सिंह, शीला सिंह के साथ ही बड़ी संख्या में क्षेत्रीय नागरिक श्रीराम कथा में शामिल रहे।
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