बस्ती । महर्षि दयानंद सरस्वती और सन्त रविदास जयंती के अवसर पर स्वामी दयानन्द विद्यालय सुरतीहट्टा बस्ती में वैदिक यज्ञ और विचार विनिमय कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस अवसर पर ओम प्रकाश आर्य प्रधान आर्य समाज नई बाजार बस्ती ने यज्ञ के पश्चात महर्षि दयानंद सरस्वती और सन्त रविदास के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि यह दोनों ही सन्त ईश्वर के अनन्य भक्त थे और ढोंग, आडंबर और सामाजिक कुरीतियों के प्रबल विरोधी थे। दोनों ने ही सनातन धर्म को सामाजिक सामंजस्य का मूल स्रोत माना है इसलिए दोनों ने ही जन्मना जाति को उचित नहीं माना। मनुष्य ब्रह्म के ज्ञान से ब्राह्मण, रक्षा और सुरक्षा के ज्ञान से क्षत्रिय, लेन देन के ज्ञान से वैश्य और सेवा ज्ञान से शूद्र होता है। इसमें जितना महत्व ब्राह्मण का है उतना ही शूद्र का है। इनमें कोई छोटा या बड़ा नहीं है बल्कि सभी एक दूसरे के पूरक और समान हैं। यह बातें हमारे वेद और मनुस्मृति बताती है। कालान्तर में हममें फूट डालने के लिए अंग्रेजों इसके गलत अर्थ करवाकर समाज को बांटने का कार्य किया पर महर्षि दयानंद सरस्वती ने वेदों का शुद्ध भाष्य करके समाज को पुनः वेदों की ओर लौटने का पावन संदेश दिया जिससे देश में संस्कारयुक्त शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए गुरुकुल और डी ए वी कालेज खोले गए। कन्याओं की शिक्षा, विधवा विवाह, पाखण्ड उन्मूलन, गौरक्षा, बाल विवाह निषेध के साथ देश रक्षा के आह्वान से देशवासियों को क्रांतिकारी बनाकर अंग्रेजों को खदेड़ने का काम महर्षि दयानंद सरस्वती की शिक्षा ने किया। आज पूरा देश इन दोनों महापुरुषों को नमन कर रहा है। इस अवसर पर शिक्षकों और बच्चों ने दोनों संतों के विचारों को एक दूसरे से साझा किया। कुछ बच्चों ने गीत से अपने विचार प्रस्तुत किए। कार्यक्रम में आदित्यनारायण गिरि, गरुण ध्वज पाण्डेय, अनूप कुमार त्रिपाठी, अरविन्द श्रीवास्तव, नितीश कुमार, अनीशा मिश्रा शिवांगी गुप्ता, महक मिश्रा, पूजा गौतम, अंशिका पाण्डेय, प्रीति रावत, स्वप्नल, राधेश्याम आर्य सहित अनेक लोग उपस्थित रहे।
बस्ती । महर्षि दयानंद सरस्वती और सन्त रविदास जयंती के अवसर पर स्वामी दयानन्द विद्यालय सुरतीहट्टा बस्ती में वैदिक यज्ञ और विचार विनिमय कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस अवसर पर ओम प्रकाश आर्य प्रधान आर्य समाज नई बाजार बस्ती ने यज्ञ के पश्चात महर्षि दयानंद सरस्वती और सन्त रविदास के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि यह दोनों ही सन्त ईश्वर के अनन्य भक्त थे और ढोंग, आडंबर और सामाजिक कुरीतियों के प्रबल विरोधी थे। दोनों ने ही सनातन धर्म को सामाजिक सामंजस्य का मूल स्रोत माना है इसलिए दोनों ने ही जन्मना जाति को उचित नहीं माना। मनुष्य ब्रह्म के ज्ञान से ब्राह्मण, रक्षा और सुरक्षा के ज्ञान से क्षत्रिय, लेन देन के ज्ञान से वैश्य और सेवा ज्ञान से शूद्र होता है। इसमें जितना महत्व ब्राह्मण का है उतना ही शूद्र का है। इनमें कोई छोटा या बड़ा नहीं है बल्कि सभी एक दूसरे के पूरक और समान हैं। यह बातें हमारे वेद और मनुस्मृति बताती है। कालान्तर में हममें फूट डालने के लिए अंग्रेजों इसके गलत अर्थ करवाकर समाज को बांटने का कार्य किया पर महर्षि दयानंद सरस्वती ने वेदों का शुद्ध भाष्य करके समाज को पुनः वेदों की ओर लौटने का पावन संदेश दिया जिससे देश में संस्कारयुक्त शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए गुरुकुल और डी ए वी कालेज खोले गए। कन्याओं की शिक्षा, विधवा विवाह, पाखण्ड उन्मूलन, गौरक्षा, बाल विवाह निषेध के साथ देश रक्षा के आह्वान से देशवासियों को क्रांतिकारी बनाकर अंग्रेजों को खदेड़ने का काम महर्षि दयानंद सरस्वती की शिक्षा ने किया। आज पूरा देश इन दोनों महापुरुषों को नमन कर रहा है। इस अवसर पर शिक्षकों और बच्चों ने दोनों संतों के विचारों को एक दूसरे से साझा किया। कुछ बच्चों ने गीत से अपने विचार प्रस्तुत किए। कार्यक्रम में आदित्यनारायण गिरि, गरुण ध्वज पाण्डेय, अनूप कुमार त्रिपाठी, अरविन्द श्रीवास्तव, नितीश कुमार, अनीशा मिश्रा शिवांगी गुप्ता, महक मिश्रा, पूजा गौतम, अंशिका पाण्डेय, प्रीति रावत, स्वप्नल, राधेश्याम आर्य सहित अनेक लोग उपस्थित रहे।
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