लड़ते भिड़ते कट गये, वर्ष आज चौबीस।
अब दिन जितने शेष हैं, मान रहे बख्शीस।।
जब तक दोनों साथ हैं, निश्चित ही तकरार।
जीवन जीने के लिए, साथी का उपहार।।
जीवन पथ पर जब मिला, हमको अंजू हाथ।
मान लिया हमने तभी, जन्म जन्म का साथ।।
जब तक दोनों साथ हैं, निश्चित ही तकरार।
जीवन जीने के लिए, साथी का उपहार।।
पूर्व जन्म का क्या पता, अगला तो है दूर।
सात जन्म के फेर में, क्यों रहना मजबूर।।
जीवन पथ पर अधर में, नहीं छोड़ना साथ।
लाख शिकायतें ही सही, करो पकड़कर हाथ।।
मुझे नहीं कुछ है पता, कितना खुश हैं आप।
इस रिश्ते की आड़ में, सुख-दुख है अभिशाप।।
पत्नी कहती नित्य ही, भले एक ही बार।
फूटी थी किस्मत मेरी, किया तुम्हें स्वीकार।।
हम भी इतना जानते, खेद बहुत यार।
पति पत्नी का सार है, करें नित्य तकरार।।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
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