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Wednesday, January 1, 2025

बस्ती के ब्रजबिहारी चतुर्वेदी 'ब्रजेश' आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी

ब्रजबिहारी चतुर्वेदी 'ब्रजेश' संवत् 1974 विक्रमी और मृत्यु संवत् 1947 विक्रमी को उत्तर प्रदेश के सन्त कबीर नगर के मलौली गांव में हुआ था। जो अब हैसर बाजार धनघटा नगर पंचायत मे वार्ड नंबर 6 में रखा गया है। यह पूरे नगर पंचायत क्षेत्र के बीचोबीच स्थित है। यह एक प्रसिद्ध चौराहा भी है जो राम जानकी रोड पर स्थित है । ये इस परम्परा के कवि पंडित श्रीराम नारायण चतर्वेदी के पुत्र थे। उन्होंने अपने बारे में खुद लिखा है – 

सम्बत सन् उन्नीस सौ अरु चौहत्तर मान।

ज्येष्ठ त्रयोदस कृष्ण शनि जन्म ब्रजेश सुजान।

चौबे वुल सुपुनीत भू ग्राम मलौली खास।

रामनरायण सुकवि के पूर्व किए अभिनाश।।

ये बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि वाले थे। ये रंगपाल जी के घर हरिहरपुर बराबर आया जाया करते थे। मैथिलीशरण गुप्त तुलसी बिहारी और देव,कलाधर, द्विजेश बद्री प्रसाद पाल, गया प्रसाद शुक्ल सनेही, जगदम्बा प्रसाद हितैषी तथा रीवा के बृजेश कवि से प्रभावित रहें हैं। जमींदारी टूटने से परेशान होते हुए भी वे साहित्य के लिए समय निकल लेते थे। अंधे होते हुए भी वह लिखने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहे। वे 40 वर्षों तक जिले के छंद परम्परा के विकास में जुड़े रहे।

रचनाएं :- 

इन्होंने तीन रचनाएं लिखी थीं।

कवित्त मंजूषा 

इसमें 1000 छंद होना कहा जाता है। दोहा, सवैया, मनहरन, कुण्डली, रोला तथा मधुरा आदि में रचनाएं लिखी गई हैं।

प्राकृतिक वर्णन, सरयू वर्णन,केवट प्रसंग, व्यंग्य रमोमा, लंका दहन, बबुआ अष्टक आदि प्रसंगों का मनोहारी निरूपण किया गया है।

ब्रजेश सतसई दो भाग में ( भाग 1)

सतसई के प्रथम भाग में श्रृंगार परक, भक्ति परक और नीति परक दोहों की रचना की गई है। श्रृंगार में वियोग परक दोहे मिलते हैं। पौराणिक प्रसंग के दोहे मन को आह्लादित करती हैं।

ब्रजेश सतसई भाग 2 

इसमें नीति , वैराग्य और गंगा जी पर भक्ति परक दोहे आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।

राम चरितावली :- 

इसमें राम चरित मानस की तरह वृहद रूप राम कथा लिखने का प्रयास किया गया है। विविध छंदों में नैनी जेल में बन्द स्वतंत्रता सेनानियों को लक्ष्य करके पण्डित मदन मोहन मालवीय जी के मुख से राम कथा कहलवाई गई है। कालिदास से प्रेरित रघुवंश के इच्छाकु से लेकर राम जी सम्पूर्ण चरित्र को उजागर किया गया है।भारत महिमा से ग्रन्थ का श्री गणेश किया गया है।

श्रृंगार और नीति के कवि :- 

ब्रजेश जी मूलतः श्रृंगार और नीति के कवि थे। ब्रज भाषा के पक्षधर थे। संस्कृत के ज्ञान के शब्दों में लालित्य अपने आप आता गया है। अलंकारों में उत्प्रेक्षा उपमा रूपक संदेह भ्रतिमान अनन्वय तदगुण श्लेष आदि का प्रयोग इनके दोहों में बड़ी उत्कृष्टता के साथ हुआ है। शब्दों की सफाई के साथ भावों का अभिव्यक्ति करण बड़ा ही प्रवाहमय है। शब्दों में विषयबोध के प्रति पर्याप्त शालीनता है। बस्ती के छंदकार शोध प्रबंध के शोधकर्ता स्मृतिशेष डा.मुनि लाल उपाध्याय 'सरस' जी ने पृष्ठ 170 पर ब्रजेश जी का मूल्यांकन इन शब्दों में किया है -

ब्रजेश जी का बस्ती मंडल के छंदकारों में अपना एक विशिष्ट स्थान है। विद्वानों के बीच में ब्रजेश जी अपने पांडित्य के लिए सदैव सम्मादृत रहे हैं। —-- उनकी ब्रजेश मंजूषा और ब्रजेश सतसई हिन्दी की अनूठी निधि है। यह प्रकशित होते ही मंडल की छंद परम्परा को ये गौरव शाली कृतियां महत्व ही नहीं प्रदान करेगी अपितु इस चरण के साहित्यिक गौरव को बढ़ाने में सक्षम होगी।छंद परम्परा के विकास में ब्रजेश जी के कई पीढ़ी की कवियों ने जो गौरव दिया है उसके स्थाई स्तम्भ के रूप में ब्रजेश जी सदैव सम्मादृत रहेंगे।”


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