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Saturday, April 20, 2024

मानवता के पुजारी थे महावीर स्वामी - योगेंद्र पाण्डेय


बस्ती। सरस्वती शिशु मंदिर पक्कीबाग गोरखपुर में महावीर स्वामी की जयंती के पूर्व संध्या पर कार्यक्रम आयोजित हुआ ।जिसमें विद्यालय के वरिष्ठ आचार्य श्री योगेंद्र पाण्डेय जी ने कहा कि महावीर स्वामी भारत में ही नहीं संपूर्ण विश्व में सत्य , अहिंसा, मानवता, मित्रता, करुणा एवं भाईचारा का संदेश दिया। जैन धर्म के चौंबीसवें तीर्थंकर थे। भगवान महावीर का जन्म करीब ढाई हजार वर्ष पहले , वैशाली गणराज्य के क्षत्रियकुंड (कुंडग्राम) वैशाली में अयोध्या इक्ष्वाकुवंशी क्षत्रिय परिवार में हुआ था। तीस वर्ष की आयु में महावीर ने संसार से विरक्त होकर राज वैभव त्याग दिया और संन्यास धारण कर आत्मकल्याण के पथ पर निकल गये। 12 वर्षो की कठिन तपस्या के बाद उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ जिसके पश्चात् उन्होंने समवशरण में ज्ञान प्रसारित किया। 72 वर्ष की आयु में उन्हें पावापुरी से मोक्ष की प्राप्ति हुई। इस दौरान महावीर स्वामी के कई अनुयायी बने जिसमें उस समय के प्रमुख राजा बिम्बिसार, कुणिक और चेटक भी शामिल थे। जैन समाज द्वारा महावीर स्वामी के जन्मदिवस को महावीर-जयंती तथा उनके मोक्ष दिवस को दीपावली के रूप में धूम धाम से मनाया जाता है।

जैन ग्रन्थों के अनुसार समय समय पर धर्म तीर्थ के प्रवर्तन के लिए तीर्थंकरों का जन्म होता है, जो सभी जीवों को आत्मिक सुख प्राप्ति का उपाय बताते है। तीर्थंकरों की संख्या चौबीस ही कही गयी है। भगवान महावीर वर्तमान अवसर्पिणी काल की चौबीसी के अंतिम तीर्थंकर थे और ऋषभदेव पहले हिंसा, पशुबलि, जात-पात का भेद-भाव मिटाने का कार्य किया । उन्होंने दुनिया को जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत बताए, जो है– अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य (अस्तेय) , ब्रह्मचर्य। उन्होंने अनेकांतवाद, स्यादवाद और अपरिग्रह जैसे अद्भुत सिद्धान्त दिए। महावीर के सर्वोदयी तीर्थों में क्षेत्र, काल, समय या जाति की सीमाएँ नहीं थीं। भगवान महावीर का आत्म धर्म जगत की प्रत्येक आत्मा के लिए समान था। दुनिया की सभी आत्मा एक-सी हैं इसलिए हम दूसरों के प्रति वही विचार एवं व्यवहार रखें जो हमें स्वयं को पसन्द हो। यही महावीर का 'जियो और जीने दो' का सिद्धान्त है।
इस अवसर पर विद्यालय के प्रधानाचार्य डॉ राजेश सिंह, प्रथम सहायक श्रीमती रुक्मिणी उपाध्याय  सहित समस्त विद्यालय परिवार उपस्थित रहा।

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