महादेवा (बस्ती) । महर्षि उद्दालक मुनि की तपोभूमि तथा कुआनो और मनोरमा नदी के पवित्र संगम तट पर लालगंज की धरती चैत्र मास की पूर्णिमा से लगने वाला प्रसिद्ध पौराणिक मेला 25 से शुरू हो रहा है। जो एक सप्ताह तक चलेगा। किद्वंवदियों के अनुसार रावण वध के बाद ब्रह्म हत्या के लगे पाप से मुक्ति पाने के लिए गरुड़ पुराण में उल्लेख है कि इस संगम तट पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने पूजन, हवन आदि कर्मकाण्ड चैत्र मास की पूर्णिमा के एक दिन पूर्व पूर्ण किया था। तत्पश्चात शाम को भगवान ने माता सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ बनवाकर लिट्टी चोखा खाने के बाद रात्रि विश्राम किया था। तभी से इस पवित्र संगम तट के महत्व विशेष बढ़ गई है। लोकमान्यताओं के अनुसार महर्षि उद्दालक मुनि की इस तपोस्थली पर तभी से भव्य मेले का आयोजन होता चला आ रहा है। जहां देश-प्रदेश से शहरों से व्यापार करने के लिए मेले में आते हैं। इस पौराणिक संगम के पश्चिमी तट पर जहां उद्दालक मुनि उनके आश्रम है ,वहीं पूर्वोत्तर तट पर संत रविदास,सूफी संत कबीर दास, हनुमान जी का दक्षिणी पूर्व तट पर क्षीर सागर में सयन करते हुए लक्ष्मी संग विष्णु भगवान का मनमोहक मंदिर मौजूद है। प्रचलित परंपराओं के अनुसार चैत्र मास की पूर्णिमा एक दिन पूर्व शाम को राम भक्त श्रद्धालु संगम की तट पर आकर लिट्टी और चोखा बनाकर खाकर रात्रि विश्राम करने के बाद दूसरे दिन स्नान ध्यान, हवन, पूजन के उपरांत मेले का आनंद लेते हैं।
महादेवा (बस्ती) । महर्षि उद्दालक मुनि की तपोभूमि तथा कुआनो और मनोरमा नदी के पवित्र संगम तट पर लालगंज की धरती चैत्र मास की पूर्णिमा से लगने वाला प्रसिद्ध पौराणिक मेला 25 से शुरू हो रहा है। जो एक सप्ताह तक चलेगा। किद्वंवदियों के अनुसार रावण वध के बाद ब्रह्म हत्या के लगे पाप से मुक्ति पाने के लिए गरुड़ पुराण में उल्लेख है कि इस संगम तट पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने पूजन, हवन आदि कर्मकाण्ड चैत्र मास की पूर्णिमा के एक दिन पूर्व पूर्ण किया था। तत्पश्चात शाम को भगवान ने माता सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ बनवाकर लिट्टी चोखा खाने के बाद रात्रि विश्राम किया था। तभी से इस पवित्र संगम तट के महत्व विशेष बढ़ गई है। लोकमान्यताओं के अनुसार महर्षि उद्दालक मुनि की इस तपोस्थली पर तभी से भव्य मेले का आयोजन होता चला आ रहा है। जहां देश-प्रदेश से शहरों से व्यापार करने के लिए मेले में आते हैं। इस पौराणिक संगम के पश्चिमी तट पर जहां उद्दालक मुनि उनके आश्रम है ,वहीं पूर्वोत्तर तट पर संत रविदास,सूफी संत कबीर दास, हनुमान जी का दक्षिणी पूर्व तट पर क्षीर सागर में सयन करते हुए लक्ष्मी संग विष्णु भगवान का मनमोहक मंदिर मौजूद है। प्रचलित परंपराओं के अनुसार चैत्र मास की पूर्णिमा एक दिन पूर्व शाम को राम भक्त श्रद्धालु संगम की तट पर आकर लिट्टी और चोखा बनाकर खाकर रात्रि विश्राम करने के बाद दूसरे दिन स्नान ध्यान, हवन, पूजन के उपरांत मेले का आनंद लेते हैं।
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