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Sunday, March 10, 2024

लघुकथा-...समझौता

यामिनी को मायके आये चार महीने से ज्यादा समय हो गया किन्तु सुधाकर ने एक बार भी फोन नहीं किया। यामिनी ने भी तय कर लिया था कि वह न तो फोन करेगी और न ही तब-तक ससुराल जायेगी, जब-तक सुधाकर शराब पीना नहीं छोड़ देता। हालांकि इतने दिनों में शायद ही कोई दिन ऐसा बीता हो, जब उसे सुधाकर की याद न आई हो। वह उसके बढ़ते दुर्व्यवहार से तंग आ चुकी थी। इधर सुधाकर आये दिन शराब के नशे में बेवजह यामिनी से लड़ता, गाली-गलौज करता और कभी-कभी हाथ भी उठा देता था। उसके बच्चे यह देखकर डरे सहमें से रहते थे। सुधाकर नौकरी पाने के कुछ समय बाद से ही शराब पीने लगा था, किन्तु यामिनी को इसकी जानकारी शादी के बाद हुई। तब यामिनी को सुधाकर से कोई परेशानी नहीं थी, क्योंकि वह उसे बहुत प्रेम करता था और उसका पूरा ध्यान रखता था। यामिनी भी सुधाकर के साथ बहुत खुश थी, यद्यपि वह चाहती थी कि सुधाकर शराब पीना छोड़ दे किन्तु यह जानकर कि अधिकारियों की आवभगत करने के लिए उसे कभी-कभी शराब पीना पड़ता है, उसने सुधाकर को टोकना बंद सा कर दिया। प्रारम्भ में तो सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा, लेकिन धीरे-धीरे सुधाकर की संगति बिगड़ने लगी। वह शराब का आदी बनता गया, जिससे उसके व्यवहार में भी परिवर्तन आने लगा। ड्यूटी से छूटने के बाद अपने दोस्तों के साथ शराब पीना उसकी दिनचर्या-सी हो गई। वह बिना शराब पीये घर नहीं आता था। यामिनी यह सोंचकर कि जल्द ही सब सामान्य हो जाएगा, कुछ दिनों तक तो अनदेखी करती रही लेकिन पानी सिर से ऊपर चढ़ता देख, उसने सुधाकर के शराब पीने पर टोकना शुरू कर दिया। इससे दोनों के बीच आये दिन टकराव बढ़ने लगा। यह टकराव धीरे-धीरे इतना बढ़ गया कि यामिनी और सुधाकर के मध्य प्रेम जैसे सपने की बात हो गई। यामिनी अब अपनी किस्मत को कोसने भी लगी, उसकी खुशियाँ धीरे-धीरे रात के सपने की तरह कहाँ गुम हो गई, उसे पता ही नहीं चला। सुधाकर के गलत आचरण से उसके माता-पिता भी दुःखी थे। वह उसे समझाने की कोशिश करते, किन्तु सुधाकर का गुस्सा देख शांत हो जाते। शुरु-शुरू में यामिनी बच्चों का मुँह देखकर सुधाकर की हर ज्यादतियां बर्दाश्त करती रही। यद्यपि उसने हर संभव प्रयास किया कि वह शराब पीना छोड़ दे और अपनी ज़िम्मेदारी समझे, किन्तु सुधाकर शराब का इस तरह आदती हो गया था कि उसके बिना रात बीतना संभव नहीं था। पड़ोस में भी इसकी चर्चायें होने लगी थी। यामिनी यह सब देख सुनकर बहुत परेशान रहने लगी। उसने अपनी माँ से सुधाकर की गलत आदतों एवं दुर्व्यवहार के विषय में जब भी कुछ कहा, उसकी माँ बच्चों की दुहाई देकर उसे ही समझाने लगती। यामिनी कुछ समझ नहीं पा रही थी कि वह क्या करे?। घर में सास-ससुर का व्यवहार उसके प्रति बहुत अच्छा था। यामिनी को उनसे कोई शिकायत नहीं थी, वह भी उनका बेटी की तरह पूरा ध्यान रखती थी। किन्तु सुधाकर, उसमें सुधार के कोई लक्षण नहीं दिखाई दे रहे थे। वह उसी तरह शराब के नशे में घर आता और यामिनी के कुछ बोलने पर उसे अपशब्द कहते हुए लड़ाई-झगड़ा करने लगता।

उस दिन तो हद हो गई, जब बेटे के जन्मदिन पर केक काटने के लिए पूरा घर सुधाकर की प्रतिक्षा कर रहा था और वह रोज की तरह शराब में डूबा हुआ घर आया, तो यामिनी से रहा नहीं गया। उसने जैसे ही कुछ पूछा, सुधाकर लाल-पीला होकर उसे अपशब्द कहने लगा। यामिनी का भी धैर्य टूट गया और बात बढ़ते-बढ़ते यहाँ तक पहुँच गई कि सुधाकर ने यामिनी पर हाथ उठा दिया। यामिनी की बर्दाश्त की सीमा अब समाप्त हो चुकी थी, वह तुरन्त अपने बच्चों के साथ मायके चली आई। 
   "यामिनी... अपने बच्चों को देख, उनके आगे के भविष्य के बारे में भी सोच। इस तरह चिंतित होने से ज़िन्दगी नही कटेगी।" यामिनी को समझाते हुए उसकी माँ ने कहा। यामिनी ने माँ की बात का कोई जवाब नहीं दिया। उसकी आँखें भरी-भरी थीं और वह किसी चिंता में खोई हुई कमरे की दीवार को एकटक निहार रही थी। माँ ने फिर कहा, " देख बेटी, सुधाकर को इस तरह अकेला छोड़ना ठीक नहीं है, इससे वह और शराब का आदी बन जायेगा। कभी-कभी जीवन में ऐसी परिस्थिति आ जाती है जब हमारे पास उससे समझौता करने के सिवाय कोई और रास्ता नहीं रहता और..." माँ की बात पूरी होने से पहले ही यामिनी ने उनकी बात काटते हुए कहा, "माँ, मेरी ज़िन्दगी ही समझौता हो गई है। मैं जिस ज़िन्दगी को जी रही हूँ उसको सोंचकर सिहर जाती हूँ। मैंने हर परिस्थतियों से समझौता करने की बहुत कोशिश की, किन्तु मेरा भी आत्मसम्मान है।... मैंने तय कर लिया है कि जब-तक वो शराब पीना बंद नहीं करते मैं वहाँ नहीं जाऊँगी।" "किन्तु बेटी...." माँ ने जैसे ही कुछ आगे कहना चाहा, यामिनी के फोन की घंटी बजने लगी। यामिनी ने जब देखा कि वह फोन उनके सासु माँ का है तो उसने उठा लिया। "हेलो बहू... जल्दी चली आओ... चंचल का एक्सीडेंट हो गया है..और वह... ।" यामिनी अपनी सासु माँ से यह समाचार सुनते ही कांपने लगी। और किसी अनहोनी की आशंका कर रोते हुए कमरे की तरफ भागी और अपने कपड़े बैग में रखने लगी। उसकी माँ शुरू में कुछ समझ नहीं पाई किन्तु पूछने पर यामिनी ने सुधाकर के एक्सीडेंट और एक हास्पिटल के इमरजेन्सी वार्ड में भर्ती होने की बात बताई। यामिनी की माँ इस समाचार से बहुत दुःखी थी किन्तु उसे इस बात का संतोष भी था कि यामिनी अपनी जिद छोड़कर सुधाकर के पास जा रही थी। 

डाॅ. राजेन्द्र सिंह 'राही'
(बस्ती उ. प्र.)

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