शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में चलनेवाली शाखाओं की संख्या में वृद्धि, 2756 शाखाएं हो रही संचालित
भोपाल। नागपुर में आयोजित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में संपूर्ण देश के संघकार्य का वृत्त प्रस्तुत किया गया, जिसके अनुसार देश के विभिन्न भागों सहित मध्यभारत प्रांत में भी तेजी से संघकार्य बढ़ रहा है। शताब्दी वर्ष को ध्यान में रखकर मध्यभारत प्रांत में सभी इकाईयों तक संघकार्य को पहुँचाने के प्रयास चल रहे हैं। इस समय मध्यभारत प्रान्त में संघ की रचना से महानगरीय एवं ग्रामीण जिलों के 1763 स्थानों पर 2756 शाखाएं चल रही हैं। जिनमें महानगर में 37 स्थानों पर 432 शाखाएं एवं ग्रामीण जिलों में 1726 स्थानों पर 2324 शाखाएं चल रही हैं। इसके साथ ही 513 स्थानों पर 528 साप्ताहिक मिलन के रूप में संघकार्य चल रहा है। आगामी एक वर्ष में प्रान्त की प्रत्येक बस्ती और गांव तक संघ के कार्यविस्तार का लक्ष्य है। इसके अलावा संघ के स्वयंसेवकों द्वारा समाज के साथ मिलकर सेवा बस्तियों में सेवाकार्य भी चलाये जा रहे हैं।
संघ ने प्रतिनिधि सभा में राम मंदिर के संदर्भ में महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किया है। ‘श्रीराममन्दिर से राष्ट्रीय पुनरुत्थान की ओर’ शीर्षक से पारित प्रस्ताव में प्रतिनिधि सभा ने आग्रह किया है कि ‘रामराज्य’ की संकल्पना को साकार करने के लिए नागरिकों के जीवन एवं उनके सामाजिक दायित्व में प्रतिबद्धता दिखनी चाहिए। श्रीराम के आदर्शों के अनुरूप समरस, सुगठित राष्ट्रजीवन खड़ा करने में नागरिकों को अपना योगदान देना चाहिए। संघ का मानना है कि श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की घटना भारत के पुनरुत्थान के गौरवशाली अध्याय के प्रारंभ होने का संकेत है। श्रीरामजन्मभूमि पर श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा से भारत के स्वदेशी समाज में आत्मगौरव की भावना का संचार हुआ है, वह आत्मविस्मृति की स्थिति से बाहर निकला है। संघ ने स्मरण कराया है कि राम मंदिर के पुनर्निर्माण का उद्देश्य तभी सार्थक होगा, जब सम्पूर्ण समाज अपने जीवन में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के आदर्शों को प्रतिष्ठित करने का संकल्प ले। श्रीराम के जीवन मे परिलक्षित त्याग, प्रेम, न्याय, शौर्य, सद्भा
उनका जीवन भारतीय इतिहास का एक स्वर्णिम पर्व है। ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले सामान्य परिवार की बालिका से एक असाधारण शासनकर्ता तक की उनकी जीवनयात्रा आज भी प्रेरणा का महान स्रोत है। वे कर्तृत्व, सादगी, धर्म के प्रति समर्पण, प्रशासनिक कुशलता, दूरदृष्टि एवं उज्ज्वल चारित्र्य का अद्वितीय आदर्श थीं। ‘श्री शंकर आज्ञेवरुन’ (श्री शंकर जी की आज्ञानुसार) इस राजमुद्रा से चलने वाला उनका शासन हमेशा भगवान् शंकर के प्रतिनिधि के रूप में ही काम करता रहा। उनका लोक कल्याणकारी शासन भूमिहीन किसानों, भीलों जैसे जनजाति समूहों तथा विधवाओं के हितों की रक्षा करनेवाला एक आदर्श शासन था। समाजसुधार, कृषिसुधार, जल प्रबंधन, पर्यावरण रक्षा, जनकल्याण और शिक्षा के प्रति समर्पित होने के साथ साथ उनका शासन न्यायप्रिय भी था। समाज के सभी वर्गों का सम्मान, सुरक्षा, प्रगति के अवसर देने वाली समरसता की दृष्टि उनके प्रशासन का आधार रही।
केवल अपने राज्य में ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण देश के मंदिरों की पूजन-व्यवस्था और उनके आर्थिक प्रबंधन पर भी उन्होंने विशेष ध्यान दिया। बद्रीनाथ से रामेश्वरम तक और द्वारिका से लेकर पुरी तक आक्रमणकारियों द्वारा क्षतिग्रस्त मंदिरों का उन्होंने पुनर्निर्माण करवाया। प्राचीन काल से चलती आयी और आक्रमण काल में खंडित हुई तीर्थयात्राओं में उनके कामों से नवीन चेतना आयी। इन बृहद कार्यों के कारण उन्हें ‘पुण्यश्लोक’ की उपाधि मिली। संपूर्ण भारतवर्ष में फैले हुए इन पवित्र स्थानों का विकास वास्तव में उनकी राष्ट्रीय दृष्टि का परिचायक है।
पुण्यश्लोक देवी अहिल्याबाई की जयंती के 300 वें वर्ष के पावन अवसर पर उन्हें श्रद्धापूर्वक नमन करते हुए समस्त स्वयंसेवक एवं समाज बंधु-भगिनी इस पर्व पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में मनोयोग से सहभाग करें। उनके दिखाये गए सादगी, चारित्र्य, धर्मनिष्ठा और राष्ट्रीय स्वाभिमान के मार्ग पर अग्रसर होना ही उन्हें सच्ची श्रध्दांजली होगी।
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