- बस्ती-रुधौली मार्ग स्थित वाल्टरगंज के मुस्तफाबाद में स्थापित किया है गुड़ व खाड़सारी उद्योग
- 25 साल पहले स्थापित इस उद्योग का लाभ उठाते हैं नेपाल तक के राहगीर
- गुड़ व अन्य गन्ना उत्पादोें का हब बना है मुस्तफाबाद
बस्ती। मुस्तफाबाद के मस्तराम ने 25 साल पहले एक ऐसा छोटा सा उद्योग स्थापित किया, जो इस समय तकरीबन डेढ़ दर्जन परिवारों की जीविका का साधन बना हुआ है। मस्तराम की योजना है कि अभी इस उद्योग को और विस्तार देकर कामगारों की संख्या बढ़ाई जाएगी।
बस्ती-रुधौली मार्ग पर शहर से तकरीबन 13 किमी दूर मुस्तफाबाद में मस्तराम प्रजापति (42) ने 1999 में चार-पांच कामगारों के सहयोग से 15 हजार रुपये की लागत में गुड़ बनाने की छोटी मशीन स्थापित कर उद्योग चालू किया। फिर 2001 में 45 हजार रुपये लगाकर उसे विस्तार दिया। इस उद्योग में लाभ मिला तो 2009-10 में बैंक से कर्ज लेकर खुद की ट्राली और ट्रैक्टर का इंतजाम किया और सीधे किसानों से गन्ना खरीदने लगे। आज इस उद्योग से महराजगंज व बस्ती जिले के कुल 17 कारीगर जुड़ चुके हैं और दस से बारह हजार रुपये महीने कमा रहे हैं। यहां स्थापित उद्योग में गुड़ के साथ-साथ मसाला गुड़, जावन, राब व सिरका समेत आधा दर्जन उत्पाद तैयार किए जाते हैं। इन उत्पादों को खरीदने के लिए बस्ती, सिद्धार्थनगर, महाराजगंज और लुंबिनी दुद्धी मार्ग से नेपाल व आजमगढ़ जाने वाले राहगीर ढूंढते हुए आते हैं।
गन्ने का रेट बढ़ने से कम हुआ लाभ
मस्तराम बताते हैं कि गन्ने और डीजल का रेट बढ़ जाने से इस बार कम लाभ हुआ है। बताया कि गन्ना का मूल्य 320 से 330 रुपये प्रति कुंतल था। जबकि गुड़ व अन्य उत्पादों के दाम में कोई खास इजाफा नहीं हुआ इसलिए मुनाफा बहुत ही कम हो पाया। बताया कि एक कुंतल गन्ने में बमुश्किल आठ से दस किलो उत्पाद तैयार होते हैं। जबकि गुड़ का पुराना थोक रेट ही 40 से 50 रुपये प्रति किलो बिक पाया। अन्य उत्पादों से ही लाभ अर्जित हुआ है। इसलिए अब अन्य उत्पादों को बढ़ाने के लिए योजना को और अधिक विस्तार दिया जाएगा। मस्तराम ने कहा कि हाईस्कूल पास होने के बाद 1996 में मुंबई जाकर कारपेंटर का काम करने लगा लेकिन मेहनत के हिसाब से मजदूरी न मिलने के कारण कोरियर सेवा से जुड़ गया, दूसरी बात मुंबई जैसे बड़े शहर में कोरियर पहुंचाना भी बड़ा मुश्किल भरा कार्य रहा और लाभ की जगह नुकसान झेलना पड़ गया। लिहाजा 1999 में घर वापस आ गया और अपने हिस्से की जमीन के अलावा कुछ जमीन लीज पर ले लिया है। सभी कारीगरों को वेतन व भोजन आदि का खर्च देने के बाद कुल तकरीबन 15 से 20 हजार रुपये प्रतिमाह आय हो जाती है। इसी से बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाने का प्रयास कर रहा हूं।
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