नव वर्ष में वो शुभ घड़ी फिर हैं आयी
जब खड़वास के बाद फिर उल्लास छायी
सूर्य देव के धनु से मकर में जाने पर
हम सभी ने मकरसंक्रांति है मनायी।।
चहु दिशाओं के जन- जन में है
खुशी हर्ष उल्लास,उमंग व शांति
जब हर भारतवासी मनाते
पीहू,पोंगल लोहड़ीऔर मकरसंक्रांति।
खेत,खलिहान और माँ धरती
खिल उठीं सरसो के पीत श्रृंगार से।
हमारे अन्नदाता,के भर गये भंडार
तिल,अन्न,गुड़ और नयी धान से।।
सभी नर नारी और जन हुये तृप्त
पवित्र गंगा नदी में स्नान से।
हुआ प्रफुल्लित तन मन
उत्साह,सकारत्मक सोच और ज्ञान से।।
तृप्त हुआ हर मन
तिल के लड्डू मीठे गुड़ की
ख़ुशबू के स्वाद से।
पूरब ने चढ़ाया खिचड़ी बाबा गोरखनाथ को
उगते सूरज की भांति समर्पण भाव से।
चले डोर मंझे चरखी संग
व्योम भेदने और सजाने को दृश्य विहंग।
बच्चे बूढ़े दौड़े लेकर हाथों में
रंग बिरंगे खुशी के सुंदर पतंग।।
हम सभी जन सकारत्मक सोच से
लेंगे स्वस्थ जीवन का प्रण।
क्योंकि आज कल हर तरफ फैला है
बीमारी,महामारी और संक्रमण।।
बोयेंगे सब उम्मीदों के बीज ख़ुद मे
और लाएंगे फिर जीवन मे क्रांति।
हम सभी भारतवासी मिल कर
प्रेम भाई चारे से मनाएंगे मकरसंक्रांति।।
कुन्दन वर्मा पूरब
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