इससे लिफाफा भी रह्ता बिलकुल अनजान था।।
खतों को उस दौर मे हवाओ पर भरोसा गुमान था।
पर अक्सर हवाओ की वेवफाई से ये बदनाम था।।
प्रेमी या प्रेमिका की खुशबू ही ख़त का पहचान था।
सच उस दौर में, ये सूचना का.सफल इंतजाम था।।
ख़त में ही बसता प्रेमियों का ज़ज्बात और जान था।
धड़कनों की भाषा से इस खत का बड़ा पहचान था।।
इसलिए सभी का इस भाषा पर तब बहुत ध्यान था।
सच अस्सी के दशक वालों का हर घड़ी इम्तहान था।।
उस दौर में ख़त के अलावा नही कोई दूजा इंतजाम था
तभी तो हर खत डाकिये पर घर वालों का पूरा ध्यान था।
उस दौर में कागज के इस मासूम पुर्जे में बहुत जान था।
जिसमे सच्चा प्रेम सिमट कर भी मौन से गुलफ़ाम था।।
कुन्दन वर्मा पूरब
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