बस्ती। जिसके जीवन में श्रीमद्भागवत की बूंद पड़ी, उसके हृदय में आनंद ही आनंद होता है। भागवत को आत्मसात करने से ही भारतीय संस्कृति की रक्षा हो सकती है। भगवान को कहीं खोजने की जरूरत नहीं, वह हम सबके हृदय में मौजूद हैं। यह सद् विचार स्वामी उत्तम कृष्ण शास्त्री जी महाराज ने दक्षिण दरवाजा के निकट आयोजित 9 दिवसीय संगीतमयी श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन व्यासपीठ से व्यक्त किया। महात्मा जी ने प्रहलाद चरित, अजामिल उद्वार और वामन अवतार की कथा विस्तार से सुनाया।
प्रहलाद चरित की कथा सुनाते हुये महात्मा जी ने कहा कि यदि भक्त सच्चा हो तो विपरीत परिस्थितियां भी उसे भगवान की भक्ति से विमुख नहीं कर सकती। भयानक राक्षस प्रवृत्ति के हिरण्यकश्यप जैसे पिता को प्राप्त करने के बावजूद भी प्रह्लाद ने अपनी ईश्वर भक्ति नहीं छोड़ी और सच्चे अर्थों में कहा जाए तो प्रह्लाद द्वारा अपने पुत्र होने का दायित्व भी निभाया गया। पुत्र का यह सर्वाेपरि दायित्व है कि यदि उसका पिता कुमार्गगामी और दुष्ट प्रवृत्ति का हो तो उसे भी सुमार्ग पर लाने के लिए सदैव प्रयास करने चाहिए। प्रह्लाद ने बिना भय के हिरण्यकश्यप के यहां रहते हुए ईश्वर की सत्ता को स्वीकार किया और पिता को भी उसकी ओर आने के लिए प्रेरित किया। लेकिन राक्षस प्रवृत्ति के होने के चलते हिरण्यकश्यप प्रहलाद की बात को नहीं मानता। ऐसे में भगवान नरसिंह द्वारा उसका संहार हुआ उसके बाद भी प्रह्लाद ने अपने पुत्र धर्म का निर्वहन किया और अपने पिता की सद्गति के लिए ईश्वर से प्रार्थना की।
यज्ञाचार्य श्री विष्णु शरण शास्त्री, वेद प्रकाश शास्त्री, विनीत शास्त्री, पं पंकज शास्त्री, पं रंजीत शास्त्री, विनीत शास्त्री, पं. शुभम आदि ने विधि विधान से वैदिक परम्परानुसार पूजन कराया। मुख्य यजमान दिनेश चन्द्र पाण्डेय ने विधि विधान से परिजनों, श्रद्धालुओं के साथ व्यास पीठ का वंदन किया। देवेश पाण्डेय, अविनाश पाण्डेय, पिकूं पाण्डेय, प्रदीप चन्द्र पाण्डेय, दिलीप चन्द्र पाण्डेय, वागार्थ सांकृत्यायन, शिवम, शुभम, ओमजी, सुमन, अर्चना, प्रतिभा, अंजु, प्रमिला, प्रतिमा, पूर्णिमा, कंचन, सात्विक, बंटी, क्षमा, सविता के साथ ही बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।
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