हुआ स्वयंवर तुमसे अपना रिश्ता तुमसे जोड़ चली
बाबुल ने है बहुत दुलारा आंगन उनका छोड़ चली।
सम्बंधों की गज़ब ही रीति युगों युगों से पायी है
जन्म दिया जिस कोख ने मुझको मुख उनसे मैं मोड़ चली।।
(2.)
प्रेम प्रतिज्ञा करके सीता निकल पड़ी वन राम के संग
पली बढ़ी थी वैभव में पर अटल खड़ी वह राम के संग।
रावण का छल दुस्साहस न डिगा सका था सीता सतीत्व
जीत लिया सोने की लंका अवध चली वह राम के संग।।
(3.)
महाभारत की सुनो कहानी जीवन दर्शन कहती है
ज्ञान दिया श्रीकृष्ण ने जिसमें, देह कवच बस कहती है।
जीवन का उद्देश्य बनाकर सफल करो जीवन अपना
लोभी कपट विध्वंस करेगा प्रेम सुधा रस कहती है।।
अंजू विश्वकर्मा 'अवि '
गोरखपुर, उ.प्र.
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