मेरी ये कविता सभी स्त्रियों को समर्पित...
स्त्री मात्र एक तन,आकर्षण व सुंदरता का नाम नही।
स्त्री मात्र काम और सिर्फ ,इस्तेमाल का समान नही।।
स्त्री तो मानव सभ्यता की वो अदृश्य ,ईश्वरीय रेखा है।
जिस पर मानव सभ्यता ने चल कर बढ़ना सीखा है।।
स्त्री सुंदर मन ,पवित्र ह्रदय की भाव व कोमलता भी है।
तभी तो स्त्री आँखों में,ममता श्रृंगार खूब फलता भी है।।
जँहा स्त्री,प्रेम,वीर,करुणा,भक्ति और वियोग का सार है।
वही,सब्र,धैर्य,सहनशीलता व त्याग का स्त्री का श्रृंगार है।।
बेटी के रूप में स्त्री घर की मान और खुशी का भण्डार है।
तो माँ के रूप में स्त्री,स्नेह,व गागर में ममता का सार है।।
पत्नी के रूप में स्त्री पुरुषों का सब व प्यारा घर संसार है।
तो बहु के रूप में स्त्री,दो घरो की बुनियाद का आधार है।।
स्त्री के सीपी में समाये होते सुंदर सुंदर मोती से सपने हैं।
स्त्री को दिल से समझने वाले सभी लोग उसके अपने है।।
स्त्री मर्यादा,सब्र धैर्य और दो घरों आन, बान और शान है।
जो स्त्री को न समझे वो पुरुष सचमुच बहुत ही नादान है।।
स्त्री के मन में तो हसरतों का अथाह,समंदर मचलता है।
जिसमें मछलियों सा सुंदर और सुहाना सपना पलता है।।
जिसके आँचल में,सदा प्रेम व ममता का दीप जलता है।
होंठ हँसते और दिल में में सभी,अपने सदा ही बसते है।।
स्त्री मात्र तन नही,ये तो देवी व पूरी आस्था की मंदिर है।
मर्यादा,वफ़ाऔर प्रेम का दीपक जलता जिसके अंदर है।
वो स्त्री ही है जिससे,मानव जीवन सदैव आगे बढ़ता है।
तभी तो स्त्री के सजदे में पूरब का सर सदैव झुकता है।।
कुन्दन वर्मा "पूरब"
No comments:
Post a Comment