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Friday, November 3, 2023

साहित्य और आध्यात्म

साहित्य और आध्यात्म दोनों भिन्न नहीं है अपितु एक दूसरे के पूरक हैं। क्योंकि इसकी झलक हमारे पूर्ववर्ती साहित्यकारों की रचनाओं में देखने को मिलती है। इसका प्रमुख उदाहरण एक महान साहित्यकार एवं राष्ट्रकवि *रामधारी सिंह दिनकर जी की रचनाओं में देखने को मिलती हैं , रश्मिरथी इसका एक जीता जागता उदाहरण है जिसमें कवि ने अपनी कविता के माध्यम से महाभारत के प्रसंगों का वर्णन किया है। रश्मिरथी में स्वयं कर्ण के मुख से निकला है। साहित्य जहाँ समाज का दर्पण है  वहीं आध्यात्म ज्ञान की पराकाष्ठा है। साहित्य लोकजीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है। साहित्य और आध्यात्म एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यह समाज की गतिविधियों तथा रहन - सहन पर भी प्रभाव डालते हैं।

रीतेश पाठक 

साहित्य संस्कृत शब्द सहित से बना है , विद्वानों का कथन है -: सह सहित तस्य भवः अर्थात कल्याणकारी भाव तथा आध्यात्म का अर्थ है अपने भीतर के चेतन तत्व को जानना तथा जगाना।
गीता के आठवें अध्याय में अपने स्वरुप अर्थात जीवात्मा को आध्यात्म कहा गया है। आध्यात्म की अनुभूति सभी प्राणियों में निरंतर होती रहती है।
आध्यात्म पारलौकिक विश्लेषण या दर्शन नहीं है आध्यात्म का शाब्दिक अर्थ है -: स्वयं का अध्ययन। शरीर के भीतर चैतन्य है , प्राण है। इसके भीतर आकाश भी है। इसके अलावा बाकी जो कुछ है वह आध्यात्म है।
यह विचार मानव तथा समाज के कल्याण के लिए समर्पित है।

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