साहित्य और आध्यात्म दोनों भिन्न नहीं है अपितु एक दूसरे के पूरक हैं। क्योंकि इसकी झलक हमारे पूर्ववर्ती साहित्यकारों की रचनाओं में देखने को मिलती है। इसका प्रमुख उदाहरण एक महान साहित्यकार एवं राष्ट्रकवि *रामधारी सिंह दिनकर जी की रचनाओं में देखने को मिलती हैं , रश्मिरथी इसका एक जीता जागता उदाहरण है जिसमें कवि ने अपनी कविता के माध्यम से महाभारत के प्रसंगों का वर्णन किया है। रश्मिरथी में स्वयं कर्ण के मुख से निकला है। साहित्य जहाँ समाज का दर्पण है वहीं आध्यात्म ज्ञान की पराकाष्ठा है। साहित्य लोकजीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है। साहित्य और आध्यात्म एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यह समाज की गतिविधियों तथा रहन - सहन पर भी प्रभाव डालते हैं।
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रीतेश पाठक |
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