कुछ पल चुरा कर लाई हूँ
इत्रदान से सुखद जज़्बातों की
कुछ बूंदें जिंदगी में ले आई हूँ
कुछ रिश्ते जो हो गए खोखलें
उसको भरने के लिए
अपने अरमानों, एहसासों के
कुछ लम्हें उधार लाई हूँ
दिल के किसी कोने में टीस
कही न रह जाएं
इसलिए सब्र ,संतोष का एक
आलम रब से मांग लाई
वैसे तो यादों की भी एक
अपनी अलग दुनिया होती है
कही सुखद कही दुखद
कही खट्टी -मीठी,कही अनकही
एक कोने में दबी होती है
आज बहुत अर्से के बाद इनसे
मुलाकात की घडी आई है
समय के चक्र में बंधी हुई
सौगात आज लाई हूँ
भूल नही पाई इन्हें मैं इसलिए
फिर से उन गलियों में आई हूँ।।
जगदीश कौर
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