दिखावे का ये खेल फिर से चल गया
मानव के भीतर बैठा राम हैं या रावण
उत्तर फिर एक साल के लिए टल गया
आ गया फिर असत्य पर सत्य की विजय का विजयदशमी पावन त्योहार।
इस बार फिर होगा,पापी अधर्मी,पथ भ्रष्ट रावण को जलाने का पुण्य कार्य।। 1
पर लगता है, रावण इस बार थोड़ा सा गरजेगा,चिल्लयेगा और गुर्रायेगा।
ये कागज का रावण,देश के उन तमाम ज़िंदा रावणो को आइना दिखायेगा।। 2
जैसा हूँ अंदर,वैसा ही बाहर हूँ दिखता,रावण आज फिर सबको बतलायेगा।
आज के इन रावणो की तरह अपना असली चरित्र कभी भी ना छिपायेगा।। 3
वर्तमान दौर में सज्जनता का मुखौटा लगा क्यो लोग बन जाते है दुराचारी।
देश व घर की लाज नारी,और देवी जैसी बेटीयो के ये बन रहे है, क्यो शिकारी।।4
रावण पूछेगा सवाल आज क्यो सूर्पनखा की जगह बेटियों की नाक कट रही है।
अगर मैं जला दिया गया तो आज भी नारी क्यो हैवानों की शिकार बन रही है।।5
देश की नारी,बहु,बेटी घर से बाहर निकलने में क्यो हिचक और डर रही है।
सदाचारी राजा है तो प्रजा क्यो नही उसके साथ कदम मिला चल रही है।।6
नाहक,मेरे काग़ज के पुतले पर तीर चलाओ,हर साल की तरह मुझको जलाओ।
पर इन ज़िंदा रावणों का भी करो उपाय,इनको भी तो मुखौटो से बाहर लाओ।।7
मैं पूछता हूँ,क्या जलाने के लिए केवल हम ही है धरती पर ज़िंदा रावणों की क्या कमी है।
राम तो सबके आराध्य,है पर तुम सब मे उनके गुणों को अपनाने की बड़ी कमी है।।8
आओ मुझ पर अब तीर चलाओ,मुझ कागज के पुतले को फिर से जलाओ।
सभी प्रभु राम के भक्त हो मुझे जलाओ,पर उनके सत्य,न्याय व धर्म के गुण भी तो अपनाओ।।9
कुन्दन वर्मा "पूरब"
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