चित्रकूट। भगवान श्री राम की तपोस्थली चित्रकूट को भगवान श्री राम की वनवास नगरी के रूप में जाना जाता है। चित्रकूट जनपद में शहर मुख्यालय से 18 किलोमीटर एक ऐसा स्थान है। जहां सभी तीर्थ का जल एक कुएं में आज भी संग्रहित है। इसी कूप की वजह से कस्बे का नाम भरतकूप भी पड़ा है। मान्यता है कि इस कूप में सभी तीर्थों का जल समाहित है, यहां स्नान करने से प्रयागराज और हरिद्वार जैसा ही पुण्य लाभ मिलता है।
ऐसी मान्यता है कि भगवान श्री राम जब वनवास के लिए चित्रकूट आ गए थे तो उनको वापस लेने के लिए भगवान श्री राम के भाई भरत उनका राज्याभिषेक करने के लिए सभी तीर्थ का जल लेकर आए थे। लेकिन जब भगवान श्री राम उनके साथ वापस नहीं गए तो वह इसी स्थान पर एक कुएं में सभी तीर्थ का जल डाल दिया था। जिससे इस जगह का नाम भरत कूप पड़ा था और तभी से इस क्षेत्र को भरतकूप के नाम से भी जाना जाने लगा है। कहा जाता है इस कुएं का जल पीने और उस कुएं की परिक्रमा लगाने से लोग निरोग व उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
भरत जी ने कुएं में छोड़े थे कई तीर्थो के जल
भरत जी प्रभु श्री राम के राज्याभिषेक के लिए सभी तीर्थ का जल लेकर राज्याभिषेक करने के लिए श्री राम के पास आए हुए थे। उसी दौरान प्रभु श्री राम ने राज्याभिषेक से भरत जी को मना कर दिया था। तभी भरत जी ऋषियों की आज्ञा पर अपने साथ ले सभी तीर्थ का जल वहां बने कुएं में छोड़ दिया था। तब से इस कुएं का नाम भरतकूप पड़ गया था और कुएं के नाम के आधार पर इस कस्बे का नाम भी धार्मिक स्थल से जोड़कर भरतकूप रख दिया गया। जहां हर वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं।
जानिए- क्या है भरतकूप का महत्व
चित्रकूट भरत मंदिर के संत दिव्य जीवन दास महाराज बताते हैं कि जब प्रभु श्री राम 14 वर्ष वनवास के लिए चित्रकूट की तरफ प्रस्थान किया तो भरत जी इनको मनाने के लिए खड़ाऊ लेकर अयोध्या से चले थे। इस दौरान उन्होंने विभिन्न तीर्थ स्थलों का जल एक लोटे में एकत्र किया था। जब प्रभु श्री राम ने राज्याभिषेक के लिए मना कर दिया। तब ऋषि अत्रि मुनि की आज्ञा पर भरत जी ने वह जल एक कुएं में डाल दिया। तब से उस कुएं का नाम भरतकूप पड़ गया और उसे कुएं के आधार पर उसे कस्बे का नाम भी भरतकूप रख दिया गया था। यहां पुण्य लाभ पाने के लिए वर्ष भर देश-विदेश से श्रद्धालु प्रतिदिन आते हैं और स्नान, ध्यान और पूजन करते हैं।
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