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Tuesday, September 26, 2023

मनी लांड्रिंग मामले में दाखिल पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई 18 को

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मनी लांड्रिंग मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ दाखिल पुनर्विचार याचिकाओं पर 18 अक्टूबर को सुनवाई करेगा। इसके लिए जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच का गठन किया गया है। बेंच में जस्टिस कौल के अलावा जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बेला त्रिवेदी शामिल हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने 25 अगस्त, 2022 को पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। कोर्ट ने कहा था कि हम सिर्फ दो पहलुओं को दोबारा विचार करने लायक मानते हैं। कोर्ट ने कहा था कि ईसीआईआर (ईडी की तरफ से दर्ज एफआईआर) की रिपोर्ट आरोपित को न देने का प्रावधान और खुद को निर्दाेष साबित करने का जिम्मा आरोपित पर होने का प्रावधान पर दोबारा सुनवाई करने की जरूरत है।
यह पुनर्विचार याचिका कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम ने दायर की है। मनी लांड्रिंग एक्ट के प्रावधानों को चुनौती देते हुए दो सौ के आसपास याचिकाएं दायर की गई थीं, जिस पर 27 जुलाई को जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली बेंच ने फैसला सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट ने 27 जुलाई को अपने फैसले में ईडी की शक्ति और गिरफ्तारी के अधिकार को बहाल रखने का आदेश दिया था। जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली बेंच ने मनी लांड्रिंग एक्ट के तहत ईडी को मिले विशेषधिकारों को बरकरार रखा था। कोर्ट ने पूछताछ के लिए गवाहों, आरोपितों को समन, संपत्ति जब्त करने, छापा डालने, गिरफ्तार करने और ज़मानत की सख्त शर्तों को बरकरार रखा था।
कोर्ट ने मनी लांड्रिंग के आरोपित याचिकाकर्ताओं की गिरफ्तारी पर चार हफ्ते की रोक लगाई थी, ताकि वे सक्षम कोर्ट में जमानत याचिका दायर कर सकें। कोर्ट ने कहा था कि मनी लांड्रिंग एक्ट में किए गए संशोधन को वित्त विधेयक की तरह पारित करने के खिलाफ मामले पर बड़ी बेंच फैसला करेगी। कोर्ट ने कहा था कि मनी लांड्रिंग एक्ट की धारा 3 का दायरा बड़ा है।
कोर्ट ने कहा था कि धारा 5 संवैधानिक रूप से वैध है। कोर्ट ने कहा कि धारा 19 और 44 को चुनौती देने की दलीलें दमदार नहीं हैं। कोर्ट ने कहा था कि ईसीआईआर एफआईआर की तरह नहीं है और यह ईडी का आंतरिक दस्तावेज है। एफआईआर दर्ज नहीं होने पर भी संपत्ति को जब्त करने से रोका नहीं जा सकता है। एफआईआर की तरह ईसीआईआर आरोपित को उपलब्ध कराना बाध्यकारी नहीं है। जब आरोपित स्पेशल कोर्ट के समक्ष हो, तो वह दस्तावेज की मांग कर सकता है।

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