रक्षाबंधन यानि रक्षा का बंधन दृ एक ऐसा रक्षा सूत्र जो भाई को हर संकट से बचाता है। रक्षाबंधन हिन्दू धर्म के मुख्य त्योहारों में से एक है। यह त्योहार भाई-बहन के बीच स्नेह और पवित्र रिश्ते का प्रतीक है। भारत ही नहीं, विश्व के कई देशों में यह त्योहार मनाया जाता है। इस दिन बहन अपने भाई को राखी यानि की रक्षा सूत्र बांधती है और भाई भी अपनी बहन को ये वचन देता है की वो हमेशा उसकी रक्षा करेगा।
कैसे मनाया जाता है रक्षाबंधन
रक्षाबंधन के कुछ दिन पूर्व ही सभी बाज़ार रंग-बिरंगी राखियों से सज जाते हैं। बहनें अपने भाइयों के लिए तरह-तरह की डिज़ाइन की राखियाँ खरीदतीं हैं, कुछ बहनें चांदी की राखी भी खरीदतीं है। तरह-तरह की मिठाइयाँ बाज़ार में आ जातीं है।
घर के सभी सदस्य बाज़ार जाकर अपने लिए नए-नए कपड़े खरीदते हैं, मिठाइयाँ खरीदते हैं। स्कूलों में छुट्टी होती है तो बच्चों में खास उत्साह देखने को मिलता है।
रक्षाबंधन के दिन राखी बांधने का खास मुहूर्त होता है। उस खास मुहूर्त के समय बहन-भाई अच्छे से तैयार होते हैं। सबसे पहले बहन भाई की आरती करती है, तिलक करती है और दाहिने हाथ की कलाई पर राखी बांधती है। बदले में भाई भी अपनी बहन को विशेष उपहार देता है और मन ही मन उसकी रक्षा करने का वचन भी लेता है।
इसके बाद परिवार के सभी लोग एक दूसरे को बधाई देते हैं और अपने परिजनों के घर जाकर बधाई देते हैं और साथ में खुशियाँ बांटते हैं। रक्षाबंधन के पूरे दिन चहल पहल का माहौल रहता है।
जिन भाइयों के बहन नहीं होती या जिन बहनों का भाई नहीं होता वो भी किसी ना किसी को अपना भाई या बहन मानकर राखी के त्योहार को मनाते हैं।
रक्षाबंधन से जुड़ी धार्मिक कथाएँ
रक्षाबंधन को क्यूँ मनाया जाता है इसके पीछे कई दृष्टांत सुनने को मिलते हैं। ये सभी दृष्टांत रक्षाबंधन के रक्षा सूत्र के महत्व की दर्शाते हैं। इन कथाओं में कोई भी सगा भाई-बहन नहीं हैं लेकिन रक्षा सूत्र को बांधने के बाद किस प्रकार वो रक्षा सूत्र रक्षण करता है वो इन कथाओं में देखने को मिलता है।
राजा बली और माता लक्ष्मी का रक्षाबंधन
राजा बली बहुत बड़ा दानी था किन्तु उसने तीनों लोकों पर अपना आधिपत्य स्थापित कर रखा था। श्री हरी विष्णु ने वामन का अवतार धारण कर राजा बली से तीनों लोक दान में ले लिए। अब बली ने श्री विष्णु से याचना की दृ हे प्रभु मुझ पर एक कृपा करें, आप भी मेरे साथ पाताल चलकर निवास करें।
श्री विष्णु बली से प्रसन्न होकर उसकी विनंती स्वीकार कर लेते हैं और पाताल में आकर निवास करने लगते हैं।
इस बात से व्यथित होकर माता लक्ष्मी श्री विष्णु को वापस लाने के लिए भेष बदलकर बली के पास जातीं हैं और बली के हाथ में रक्षा सूत्र बांधतीं हैं। राजा बली माता लक्ष्मी से कुछ मांगने के लिए कहते हैं, तब माँ लक्ष्मी अपने मूल रूप में आतीं हैं और राजा बली से श्री विष्णु को पाताल से ले जाने की अनुमति मांगतीं हैं।
अपने दानी स्वभाव के लिए प्रख्यात बली माँ लक्ष्मी की बात मान लेते हैं और श्री विष्णु को ले जाने की अनुमति दे देते हैं। ऐसा कहा जाता है इस घटना के समय सावन का मास था।
श्री कृष्ण और द्रौपदी का रक्षाबंधन
इंद्रप्रस्थ में जब पांडव राजसूय यज्ञ करा रहे थे उस समय शिशुपाल ने श्री कृष्ण को कई अपशब्द कहे थे और जब शिशुपाल अपने अपशब्दों की सीमा को लांघ गया तो श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका वध कर दिया।
सुदर्शन चक्र के कारण श्री कृष्ण की एक उंगली से रक्त बहने लगा था। जब द्रौपदी ने ये देखा तो उसने तुरंत अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर श्री कृष्ण के हाथ पर बांध दिया। भगवान श्री कृष्ण ने उस समय द्रौपदी को यह वचन दिया था की वो एक दिन इसका ऋण अवश्य चुकाएंगे।
भरी सभा में जब द्रौपदी का चीर हरण हो रहा था तब श्री कृष्ण ने द्रौपदी के चीर को बढ़ाकर उसकी लाज रखी थी। ऐसा कहा जाता है जब द्रौपदी ने श्री कृष्ण के हाथ में साड़ी का पल्लू बांधा था उस समय सावन का महिना था।
महाभारत के युद्ध की समय की घटना
महाभारत के युद्ध के समय जब युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा की वो किस प्रकार से युद्ध में आने वाले हर संकट का सामना करेंगे, तब श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को एक मार्ग बताया- उन्होने युधिष्ठिर से कहा की तुम अपने सभी सैनिकों की कलाई पर एक रक्षा सूत्र बांध दो। वो रक्षा सूत्र उनके प्राणो की रक्षा करेगा।
युधिष्ठिर ने ऐसा ही किया और सभी सैनिकों की कलाई पर रक्षा सूत्र बांध दिया। ऐसा कहा जाता है यह घटना भी सावन के महीने में घटित हुई थी और महाभारत के युद्ध में पांडवों की विजय में उस रक्षा सूत्र का खास योगदान था।
देवराज इन्द्र और पत्नी सची की कथा
वृत्तासुर से युद्ध करने के पूर्व देवराज इंद्र की पत्नी ने अपने पति की रक्षा के लिए विशेष मंत्रोच्चार से एक रक्षा सूत्र तैयार किया था और वो सूत्र उन्होने अपने पति इन्द्र की कलाई पर बांधा था। इसके बाद वृत्तासुर के साथ युद्ध में इन्द्र की विजय हुई थी। ऐसा कहा जाता है उस समय भी श्रावण का महिना था।
हुमायूँ और रानी कर्णावती का रक्षाबंधन
चित्तौड़गढ़ की रानी कर्णावती ने मुगल शासक बहादुर शाह से अपनी और प्रजा की रक्षा के लिए हुमायूँ को रक्षा सूत्र भेजा था। उस समय हुमायु ने उस रक्षा सूत्र की खातिर रानी कर्णावती की रक्षा की थी।
उपसंहार
रक्षाबंधन विशेष रूप से भाई और बहन के बीच आपसी प्रेम को उजागर करता है। हर वर्ष आने वाला यह त्योहार हर भाई को उसकी बहन के प्रति कर्तव्य को याद दिलाता है। बहन के लिए भी ये दिन काफी खास होता है। रक्षाबंधन का त्योहार हमारे देश की संस्कृति, सभ्यता और परम्पराओं को दर्शाता है और ये बताता है की हमारे यहाँ रिश्तों का कितना महत्व है।
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