बस्ती। गुरूवार को वरिष्ठ नागरिक कल्याण समिति द्वारा प्रेस क्लब सभागार में महान गणितज्ञ आर्यभट्ट को उनकी जयंती की पूर्व संध्या पर याद किया गया। मुख्य अतिथि विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव न्यायाधीश रजनीश कुमार मिश्र ने कहा कि शून्य, पाई का मान, ग्रहों की गति व ग्रहण, बीजगणित, अनिश्चित समीकरणों के हल, अंकगणित व खगोल विज्ञान के क्षेत्र में आर्य भट्ट का योगदान सदैव याद किया जायेगा। बताया कि आर्यभट्ट का जन्म 476 ईस्वी, पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना, भारत) में हुआ था। इनके पता का नाम श्री बंडू बापू आठवले था। देश के प्रथम स्वनिर्मित कृत्रिम उपग्रह का नाम ‘आर्यभट्ट” रखा गया। यह नाम उस प्रतिभा को सम्मान देने के लिए रखा गया जिन्होने कॉपरनिकस से भी हजार वर्ष पूर्व यह बात कह दी थी कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर काटती है।
इसी क्रम में न्यायाधीश रजनीश कुमार मिश्र ने कार्यक्रम में उपस्थित लोगों को विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यक्रमों के बारे में जानकारी देते हुये कहा कि ‘न्याय चला निर्धन से मिलने’ सूत्र वाक्य पर तेजी से कार्य हो रहा है और विधिक साक्षरता बढाने के लिये अनेक कार्यक्रम चलते रहते हैं।
जिला सहकारी बैंक अध्यक्ष राजेन्द्रनाथ तिवारी ने कहा कि आर्यभट्ट भारतीय गणितज्ञ व नक्षत्र विज्ञानी थे। गुप्तकाल में साहित्य, कला, विज्ञान व ज्योतिष के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हुई। आर्यभट्ट का कर्मक्षेत्र था ‘कुसुमपुर’ जिसे आजकल पटना के नाम से जाना जाता है। उस समय इतिहास लेखन की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता था इसलिये उनके जन्म-विषय में हमें प्रमाणिक जानकारी नहीं मिलती। उनका योगदान अनूठा है।
कार्यक्रम का संचालन करते हुये समिति के महामंत्री एवं वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम प्रकाश शर्मा ने कहा कि आर्य भट्ट ने “आर्य भट्टीय” ग्रंथ की रचना की तो उस समय उनकी आयु मात्र तेईस वर्ष थी। इसमें प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों का सार संकलन तो है ही, साथ ही अनेक नवीन खोजों का सार भी प्रस्तुत किया गया है। उन्होने कहा कि आर्य भट्ट विश्व के महान वैज्ञानिक थे। आईसांटाइन ने भी इसे स्वीकार किया है।
वरिष्ठ साहित्यकार सत्येन्द्रनाथ मतवाला ने कहा कि बीजगणित में भी सबसे पुराना ग्रंथ आर्यभट्ट का है। आर्यभट्ट ने दशमलव प्रणाली का विकास किया। गणित के जटिल प्रश्नों को सरलता से हल करने के लिए उन्होंने ही समीकरणों का आविष्कार किया, जो पूरे विश्व में प्रख्यात हुआ। एक के बाद ग्यारह शून्य जैसी संख्याओं को बोलने के लिए उन्होंने नई पद्धति का आविष्कार किया।
कार्यक्रम में बटुकनाथ शुक्ल, पं. चन्द्रबली मिश्र, बी.के. मिश्र, राम यज्ञ मिश्र, आदि ने आर्य भट्ट के योगदान पर विस्तार से प्रकाश डाला। मुख्य रूप से डा. राजेन्द्र सिंह ‘राही’ दीपक सिंह प्रेमी, एसएस शुक्ला, हरिकेश प्रजापति, जगदम्बा प्रसाद भावुक, रहमान अली रहमान, सुदामा राय, डा. अजीत श्रीवास्तव राज, ओम प्रकाश पाण्डेय, प्रदीप श्रीवास्तव, रामदत्त जोशी, ओम प्रकाश धर द्विवेदी, अजमत अली सिद्दीकी, हरनरायन, कुं. आईशा, सामईन फारूकी, दीनानाथ यादव, गणेश, विकास शर्मा, पं. सदानन्द शर्मा के साथ ही अनेक लोग उपस्थित रहे।
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