अपराध व सजा
कहते हैं जब तक हमें कोई चीज मिल नहीं जाती तब तक ही हम उसकी कद्र
करते हैं। हमारे रिश्ते भी ऐसे ही होते हैं।
जब तक हमें अपना मनपसंद साथी मिल नहीं जाता तब तक ही हम अपने प्रेम
का इजहार किसी भी हद तक करते हैं और जायज या नाजायज किसी भी तरीके से उसे पाने का भरपूर प्रयास करते हैं
और पाने व भोगने के बाद हम अपने साथी की बेकद्री भी खूब करते हैं। क्षण भर में ही
अपने साथी का जीवन उदासीनता,बेपरवाही,अनगिनत
ताने,बीमारियाँ,बेवफाई,गाली-गलौज,कटाक्ष करना जैसे शब्दों से
भर देते हैं। इस प्रकार का व्यवहार पुरुष व स्त्री दोनों के ही आपसी संबंधों में
देखने व सुनने को मिलता है लेकिन ख़ास तौर पर इस तरह का व्यवहार महिलाओं के साथ अधिक होता
है। अनपढ़ ही नहीं भलीप्रकार पढ़ी-लिखी महिलायें भी अपने साथी के ऐसे ही व्यवहार को
रोजना चुपचाप झेलती हैं।
किसी भी रिश्ते की कड़वाहट या अनहोनी जब समाज के सामने एक सनसनी खबर
के रूप में मीडिया द्वारा लायी जाती है तभी वह खौफनाक लगती है नहीं तो ऐसी अनेकों
घटनाएं रोज़ाना चुपचाप हमारे समाज व परिवारों में होती हैं और कई बार हम खुद इनके
साक्षी होते हैं पर हम अपना मुहँ सिल लेते हैं और सूरदास बन जाते हैं।
अपने
परिवार की पूरी सहमति से हम लोग कितनी ही बच्चियों से उनके जन्म लेने से पहले या
बाद में जीने का हक़ छीन लेते हैं। चारदीवारी में महिलाओं पर अनेक प्रकार के
अत्याचार होते हैं। पर ये अपराध समाज में सनसनी नहीं फैलाते और
मीडिया में कवर नहीं होते इसीलिये लोग बेख़ौफ़ होकर रात-दिन इन्हें अंजाम देते रहते
हैं। इस प्रकार के अपराधों को अंजाम देकर तथा साधारण या मामूली से आदमी का मुखौटा
लगा कर अनेक अपराधी हमारे ही साथ दिन रात उठते -बैठते हैं और हमें पता तक नहीं
चलता।
आज जब एक घटना मीडिया के माध्यम से सामने आयी है तब से ऐसी अनेक
घटनाएं अब हमारे सामने आ रही हैं। काफी संभावना है कि इस प्रकार की गतिविधियों को
करोना काल में तो खूब अंजाम दिया गया होगा।
वैसे भी किसी हथियार का इस्तेमाल करके ही जान नहीं ली जाती है।
मानसिक रूप से प्रताड़ित करके भी हम अपने साथी को रोजाना मार ही रहे हैं। रिश्ते में
इतना तनाव दे दिया जाता है कि हार्ट अटैक या किसी भी अन्य बीमारी से व्यक्ति अपनी
जान से हाथ धो बैठता है। टॉक्सिक या दूषित सम्बन्ध स्लो पॉयजन का काम करते हैं और
घुट -घुट कर जीना भी आजन्म कारावास जैसी सजा ही है।इस प्रकार के अपराधों की
तो कोई सजा भी नहीं है।
समाज में हम सभी चुप चाप किसी न किसी अपराध में प्रत्यक्ष या
अप्रत्यक्ष रूप से संलग्न तो हैं ही।हमारा मौन ही इन अपराधों व अपराधियों को
बढ़ावा देता है। जहां अपराध करने के कई तरीके हैं वहीं सजा न पाने के भी कई तरीके
अपराधियों ने भली प्रकार बांच रखे हैं।
कानूनी दाँव -पेंच को जानकार और सोच समझ कर किये गए किसी भी अपराध को
करने पर बहुत जरूरी हो जाता है कि अपराध की गंभीरता को देखते हुए नियम-कानून में
बदलाव लाकर अपराधी को उसके गुनाह की कठोर सजा दी जाए।
दीपा डिंगोलिया , दिल्ली
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