बस्ती । कृष्ण कथा में प्राणायाम करने की कोई आवश्यकता नही है यह जगत को भुला देती है। ईश्वर के लिये जो जीता है वही सन्यासी है। गोपियां ईश्वर के लिये जीती थी इसलिये उन्हें प्रेम सन्यासिनी कहा गया। प्रभु प्रेम में हृदय का द्रवित होना ही तो मुक्ति है। कृष्ण कथा और बासुरी का श्रवण करते समय चाहें आंखे खुली ही क्यों न हो समाधि लग जाती है। मिठास प्रेम में होती है, बस्तु में नहीं। स्वाद गोपियों के माखन में नहीं प्रेम में था। यशोदा के हृदय में बसा हुआ कन्हैया जागा है किन्तु हमारे हृदय का कन्हैया सोया हुआ है। यह सद् विचार संत करपात्री जी महाराज जियर स्वामी ने गौर विकास खण्ड के ढोढरी गांव में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा में व्यासपीठ से व्यक्त किया।
महात्मा जी ने कन्हैया के बाल लीला के विविध प्रसंगो, गोपियों के साथ अनुराग, माखन चोरी आदि प्रसंगों का विस्तार से वर्णन करते हुये कहा कि जब तक परमात्मा को प्रेम से न बाधा जाय संसार का बन्धन बना रहता है। ईश्वर को फल दोगे तो वे तुम्हें रत्न देंगें। पाप के जाल से छूटना आसान नही है, जब तक पुण्य का बल बढता नही पाप की आदत नहीं छूटती।
बाल लीला का वर्णन करते हुये महात्मा जी ने कहा कि परमात्मा को बश में करने का सर्वोत्तम साधन है प्रेम। कन्हैया ने कभी जूते नहीं पहने, गायों की जैसी सेवा उन्होने किया शायद ही कोई कर सके। गाय में सभी देवों का वास है, गाय सेवा से अपमृत्यु टल सकती है। बासुरी का महत्व बताते हुये महात्मा जी ने कहा कि बांसुरी अपने स्वामी के इच्छानुसार ही बोलती है। इसलिये भगवान की जो इच्छा हो वही बोलना चाहिये।
कथा क्रम में भक्त प्रहलाद, कुन्ती की भक्ति और भीष्म का प्रेम, राधा के त्याग, गोकुल भूमि की महिमा और ग्वाल बाल गोपिकाओं का श्री कृष्ण के प्रति समर्पण का वर्णन करते हुये महात्मा जी ने कहा कि संसार में कुन्ती जैसा बरदान किसी ने नहीं मांगा । कुन्ती ने कन्हैया से दुःख मांगा जिससे उनका कन्हैया उनसे दूर न जाय। आजकल तो लोग भगवान से केवल सुख मांगते हैं किन्तु बिना दुख के साधना पूर्ण ही नही हो सकती। परमात्मा की चाह में विरह ही तो भक्ति की प्रतिष्ठा है।
मुख्य यजमान शशिकान्त पाण्डेय, श्रीमती सुनीता पाण्डेय, रमाकान्त पाण्डेय, श्रीमती मीना पाण्डेय ने विधि विधान से व्यास पीठ का पूजन किया। पिता रामचन्द्र पाण्डेय, माता श्रीमती कृष्ण लली पाण्डेय की स्मृति में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में अवधेश पाण्डेय, रविन्द्रनाथ, अष्टभुजा प्रसाद त्रिपाठी, आज्ञाराम चौधरी, जय प्रकाश शुक्ल, रामभवन चौधरी, तिलकराम पाठक, कनिकराम यादव, महेश चन्द्र गुप्ता, अशोक यादव, ऋषिकेश, हर्ष पाण्डेय, चन्द्रबली पाण्डेय, राम सहाय यादव, जोखू प्रधान, मनोज सिंह, रामनरेश यादव, विनोद पाण्डेय, डा. संजय, रवि शंकर, सुखपाल, अम्बिका यादव, लालजी मिश्र, लाल मोहनदास, सूर्य नरायन तिवारी, कम्बल यादव, भगवान प्रसाद मिश्र, राम सूरत यादव, अनीस चौधरी, शेषराम यादव, छोटेलाल गुप्ता, भगवत प्रसाद, शिवाजी यादव, विक्रम चौधरी, सन्तोष कुमार तिवारी, लवकुश, अरविन्द शुक्ल, मयाराम, राजमनि वर्मा, साधू यादव, सुशीला, सुमन, संध्या पाण्डेय के साथ ही बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।
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