बस्ती । श्रीमद्भागवत कथा को आत्मसात करने से ही भारतीय संस्कृति की रक्षा हो सकती है। भगवान को कहीं खोजने की जरूरत नहीं, वह हम सबके हृदय में मौजूद हैं।श्रीमद्भागवत कथा कल्पवृक्ष के समान है। इसके लिए मनुष्य को निर्मल भाव से कथा सुनने और सत्य के मार्ग पर चलना चाहिए। मनुष्य से गलती हो जाना बड़ी बात नहीं। लेकिन ऐसा होने पर समय रहते सुधार और प्रायश्चित जरूरी है। ऐसा नहीं हुआ तो गलती पाप की श्रेणी में आ जाती है। यह सद् विचार संत करपात्री जी महाराज जियर स्वामी ने गौर विकास खण्ड के ढोढरी गांव में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा में व्यासपीठ से व्यक्त किया।
महात्मा जी ने कहा कि द्वापर युग में धर्मराज युधिष्ठिर ने सूर्यदेव की उपासना कर अक्षयपात्र की प्राप्ति किया। हमारे पूर्वजों ने सदैव पृथ्वी का पूजन व रक्षण किया। इसके बदले प्रकृति ने मानव का रक्षण किया। भागवत के श्रोता के अंदर जिज्ञासा और श्रद्धा होनी चाहिए। परमात्मा दिखाई नहीं देता है वह हर किसी में बसता है।
कथा व्यास ने कहा कि, भागवत कथा ही साक्षात कृष्ण है और जो कृष्ण है, वही साक्षात भागवत है। भागवत कथा भक्ति का मार्ग प्रशस्त करती है। भागवत की महिमा सुनाते हुए महात्मा जी ने कहा कि, एक बार नारद जी ने चारों धाम की यात्रा की, लेकिन उनके मन को शांति नहीं हुई। नारद जी वृंदावन धाम की ओर जा रहे थे, तभी उन्होंने देखा कि एक सुंदर युवती की गोद में दो बुजुर्ग लेटे हुए थे, जो अचेत थे। युवती बोली महाराज मेरा नाम भक्ति है। यह दोनों मेरे पुत्र हैं, जिनके नाम ज्ञान और वैराग्य है। यह वृंदावन में दर्शन करने जा रहे थे। लेकिन बृज में प्रवेश करते ही यह दोनों अचेत हो गए। बूढे हो गए। आप इन्हें जगा दीजिए। इसके बाद देवर्षि नारद जी ने चारों वेद, छहों शास्त्र और 18 पुराण व गीता पाठ भी सुना दिया। लेकिन वह नहीं जागे। नारद ने यह समस्या मुनियों के समक्ष रखी। ज्ञान, वैराग्य को जगाने का उपाय पूछा। मुनियों के बताने पर नारद जी ने हरिद्वार धाम में आनंद नामक तट पर भागवत कथा का आयोजन किया। मुनि कथा व्यास और नारद जी मुख्य परीक्षित बने। इससे ज्ञान और वैराग्य प्रथम दिवस की ही कथा सुनकर जाग गए। उन्होंने कहा कि, गलती करने के बाद क्षमा मांगना मनुष्य का गुण है, लेकिन जो दूसरे की गलती को बिना द्वेष के क्षमा कर दे, वो मनुष्य महात्मा होता है। जिसके जीवन में श्रीमद्भागवत की बूंद पड़ी, उसके हृदय में आनंद ही आनंद होता है।
मुख्य यजमान शशिकान्त पाण्डेय, श्रीमती सुनीता पाण्डेय, रमाकान्त पाण्डेय, श्रीमती मीना पाण्डेय ने विधि विधान से व्यास पीठ का पूजन किया। पिता रामचन्द्र पाण्डेय, माता श्रीमती कृष्ण लली पाण्डेय की स्मृति में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में लाल मोहनदास, अरविन्द शुक्ल, मयाराम, राजमनि वर्मा, साधू यादव, सुशीला, सुमन, संध्या पाण्डेय के साथ ही बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।
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