शिमला। अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि कमेटी की ओर से याचिकाकर्ता को सुनवाई का मौका दिया जाना चाहिए था। विभाग ने सिर्फ कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर ही याचिकाकर्ता को अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सजा सुनाई है, जोकि नियमानुसार गलत है।
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने सहायक कमांडेंट की अनिवार्य सेवानिवृत्ति के आदेशों को रद्द कर दिया है। अदालत ने याचिकाकर्ता को सभी सेवा लाभ के साथ नौकरी बहाल करने के आदेश दिए हैं। न्यायाधीश सत्येन वैद्य ने अनिल दत्त की याचिका को स्वीकार करते हुए यह निर्णय सुनाया। याचिकाकर्ता अनिल दत्त पुलिस विभाग में सहायक कमांडेंट के पद पर तैनात था। वर्ष 2016 में जब वह ऊना के बनगढ़ में सेवाएं दे रहा था तो महिला पुलिस कर्मचारी ने उसके खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया।
महिला यौन उत्पीड़न कमेटी ने मामले की जांच की और 23 दिसंबर 2016 को अपनी में याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्रवाई किए जाने की अनुशंसा की। कमेटी की रिपोर्ट पर विभाग ने याचिकाकर्ता अनिवार्य सेवानिवृत्ति किए जाने का निर्णय लिया। विभाग ने याचिकाकर्ता को नोटिस जारी कर पूछा कि क्यों न उसे नौकरी से बर्खास्त किया जाए। याचिकाकर्ता के जवाब से असंतोष जताते हुए 24 अगस्त 2018 को उसे अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सजा सुनाई गई।
विभाग के इस निर्णय को याचिकाकर्ता ने अदालत के समक्ष चुनौती दी। अदालत ने पाया कि महिला यौन उत्पीड़न कमेटी की रिपोर्ट पर अमल करते हुए विभाग ने याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्रवाई की है। अदालत ने रिकॉर्ड का अवलोकन करने पर पाया कि कमेटी ने नियमों का पालन नहीं किया है। अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि कमेटी की ओर से याचिकाकर्ता को सुनवाई का मौका दिया जाना चाहिए था। विभाग ने सिर्फ कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर ही याचिकाकर्ता को अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सजा सुनाई है, जोकि नियमानुसार गलत है। अदालत ने नियम 14 का हवाला देते हुए अपने निर्णय में कहा कि विभाग ने इस नियम के तहत दिए गए प्रावधानों का उल्लंघन किया है।
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