प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सही मायनों में वैश्विक नेता हैं क्योंकि वह सिर्फ भारत की समस्याओं के समाधान में ही नहीं जुटे रहते बल्कि किसी वैश्विक संकट का भी कैसा समाधान निकाल कर दुनिया को राहत पहुँचाई जा सकती है, इसका भी प्रयास करते रहते हैं। इस बात का एक सशक्त उदाहरण सामने आया है। पिछले साल दिसंबर में अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के निदेशक बिल बर्न्स ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हुए कहा था कि परमाणु हथियारों के इस्तेमाल पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विचारों का रूस पर प्रभाव पड़ा और यूक्रेन युद्ध के संबंध में एक वैश्विक आपदा को रोका जा सका।
हम आपको याद दिला दें कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन को परमाणु हमले की धमकी दे चुके थे और किसी की बात सुनने के मूड़ में ही नहीं थे। लेकिन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते रहे हैं कि यह युद्ध का युग नहीं है और बातचीत से मसले को सुलझाया जाना चाहिए। जब रूस ने परमाणु हमले की धमकी दी थी तब पश्चिमी देश पुतिन को चेतावनी दे रहे थे कि यदि उन्होंने ऐसा किया तो इसकी बड़ी कीमत रूस को भी चुकानी पड़ेगी। सभी ओर से हो रही गर्मागर्मी के चलते दुनिया एक बड़े संकट की ओर बढ़ती नजर आ रही थी जिसको देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहल की और उन्हीं के समझाने पर पुतिन का गुस्सा शांत हुआ था। पुतिन और मोदी के बीच दोस्ती जगजाहिर है और इसी दोस्ती का लाज रखते हुए पुतिन ने परमाणु हमले के फैसले को पलट दिया था। अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के निदेशक बिल बर्न्स ने इसीलिए प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ करते हुए कहा था कि उनकी वजह से एक वैश्विक आपदा टल गयी।
अब भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर के बयान ने भी बर्न्स की बात की पुष्टि कर दी है। आस्ट्रिया के ‘डाई प्रेस’ को दिये साक्षात्कार में जयशंकर ने यूक्रेन संकट के बारे में एक सवाल के जवाब में स्थिति को सामान्य बनाने में योगदान देने की तैयारी का संकेत देते हुए जो बड़ी बात कही है वह यह है कि भारत ने यूक्रेन के जापोरिज्जिया परमाणु संयंत्र के आसपास स्थिति सामान्य बनाने का प्रयास किया और मास्को एवं कीव के बीच खाद्यान्न समझौते में मदद भी की।
हम आपको यह भी याद दिलाना चाहेंगे कि रूस की ओर से किये जाने वाले विस्फोटों और गोलीबारी ने यूक्रेन के जापोरिज्जिया परमाणु ऊर्जा संयंत्र के आसपास के इलाके को पिछले साल नवंबर महीने के आखिर में
हिला दिया था। उस समय अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी ने इसकी आलोचना करते हुए कहा था कि इस तरह के हमलों से एक बड़ी परमाणु आपदा का खतरा पैदा हो सकता है। अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के महानिदेशक ने कहा था कि परमाणु दुर्घटना को रोकने में मदद के उपायों की तत्काल आवश्यकता है। लेकिन रूस पर इस बात की धुन सवार थी कि यूक्रेन को किसी भी कीमत पर सबक सिखाना है तो दूसरी ओर युद्ध से बर्बाद हो चुके देश यूक्रेन से मौत का खौफ खत्म हो चुका है इसलिए उसे भी परमाणु ऊर्जा संयंत्र पर हमले की परवाह नहीं दिख रही थी लेकिन यदि वहां किसी प्रकार का हमला होता और विकिरण फैलता तो दुनिया के कई देशों को नुकसान उठाना पड़ता। वैश्विक नेता के रूप में स्थापित हो चुके नरेंद्र मोदी ही इस खतरे को टलवा सकते थे जिसमें वह कामयाब रहे।
बहरहाल, अपने साक्षात्कार में रूस से भारत द्वारा सस्ती दर पर ऊर्जा खरीद से जुड़े सवाल पूछे जाने पर जयशंकर ने कहा कि वह इस बात को राजनीतिक रूप से और गणितीय रूप से भी खारिज करते हैं कि भारत युद्ध का फायदा उठा रहा है। जयशंकर ने रूसी कच्चे तेल की कीमतों की सीमा तय करने को पश्चिमी देशों का फैसला करार दिया। उन्होंने कहा कि यह फैसला भारत के साथ विचार-विमर्श के बिना लिया गया था। उन्होंने कहा कि भारत स्वतरू उन चीजों को स्वीकार नहीं कर सकता है, जो दूसरे तय करते हों। उन्होंने कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण तेल की कीमतें दोगुनी हो गई हैं तथा तेल बाजार पर ईरान पर लगे प्रतिबंध और वेनेजुएला में होने वाले घटनाक्रमों का भी असर पड़ता है।
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