सरकार की बेरुखी और दमन के आगे जब आंदोलन धीमा पड़ने लगा तब स्व. चौधरी अजित सिंह ने लगातार किसानों का हौसला बढ़ाया उन्हें ताकत दी।
राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी जयंत सिंह ने भी किसान आंदोलन के दौरान 60 से ज्यादा किसान पंचायतें कर किसानों की आवाज को बुलंद किया। अन्नदाताओं की यह यह लड़ाई जारी रही और अंतत: किसानों को जीत मिली। लेकिन इन काले कानूनों को वापिस लेने से ही भाजपा सरकार के पाप धुलने वाले नहीं हैं। किसान नहीं भूल सकता कि कैसे एक अहंकारी सरकार ने सालभर तक उन्हें खुले आसमान के नीचे सड़को पर बैठने को मजबूर किया।
किस तरह भाजपा के वरिष्ठ नेताओं,मंत्रियों, मुख्यमंत्री और नेताओं ने आंदोलन करने वाले किसानों को आतंकवादी, खालिस्तानी और देशद्रोही तक कहकर बदनाम किया। अभी हाल ही में किस प्रकार लखीमपुर में किसानों को केंद्रीय गृह राज्य मंत्री के बेटे ने अपनी गाड़ी तले कुचल डाला,देश अभी भूला नही है
अब उपचुनावों में हार, जनआक्रोश और देशभर में किसानों की नाराजगी को देखते हुए आखिरकार प्रधानमंत्री को कानून वापस लेने का फैसला करना पड़ा। बड़ा सवाल ये है कि जो भाजपा और उसके समर्थक कल तक इन कानूनों को सही बताते नहीं थकते थे तो फिर आज उन्हें वापिस करने को मजबूर क्यों होना पड़ा। ये कानून किसान विरोधी थे, यह बात भाजपा को अब समझ आई जब 700 किसानों की जान चली गई। अपने मुद्दों को लेकर किसानों की लड़ाई जारी रहेगी।
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