जिसका नहीं यक़ीन था वो फैसला मिला ।
मुंसिफ कलम को बेच के दुश्मन से जा मिला।।
जिसकी हमें तलाश थी वो ख़ुद ही आ मिला ।
मुद्दत के बाद आशिक़ी को हौसला मिला ।।
हम जी रहे थे जिसके लिए इस जहान में।
देखा उसे क़रीब से तो बेवफा मिला।।
उबरा नहीं अभी वो पुरानी ही चोट से ।
जब भी मिला है भीड़ मे कुछ सोचता मिला ।।
तन्हा चला था मैं भी मुहब्बत की राह में।
बढ़ते ही आशिक़ों का नया काफिला मिला।।
नाकामियों से टूट रही थी ये जिंदगी ।
वो आ गए तो जीने का इक हौसला मिला।।
हर्षित घटा है छाई मुहब्बत की चार सू।
जो भी मिला चमन में वो बहका हुआ मिला।।
बिनोद उपाध्याय हर्षित
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