
तेल की कीमतें बढ़ रही हैं यहाँ
मारकेट सीढियाँ चढ़ रही हैं यहाँ
फैसला ले रही है न सरकार क्यों
सोचती क्या तु क्या गढ़ रही है यहाँ ?
अन्नदाता नहीं खेत सींचें अगर
मौन की यदि लकीरें न खींचे अगर
भूख लागी अगर देश क्या खाएगा
देख लो जा कभी तुम जरा वो डगर।
क्यों निकालो सदा तेल जनता का ही
काम कर लो कभी यार समता का भी
जो भगोड़े गए हैं विदेशों में अब,
कर वसूली जरा वो है जनता का ही।
नीरज कुमार द्विवेदी
बस्ती - उत्तरप्रदेश
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