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हरीश पाल |
संकल्प
आज फिर वही जादूगर खड़े हैं हमारे सामने
वर्षों पहले जिनके हाथों में
काले रुमाल की जगह तिरंगा था
और होठों पर जादुई मुस्कान।
हम आंखें मूंदे चलते रहे
और पहुंच गए अंधे कुएं के पास
जहां से कोई रास्ता आगे नहीं जाता।
उनके सम्मोहन का जादू
वर्षों हमें छलता रहा किंतु
भीड़ का हर चेहरा सम्मोहन से प्रभावित नहीं होता है।
जादूगर हत्या करता है
अपनी चालाक सफाई से जिस्म से खून निकलता है गर्दन धड़ से अलग होती है किंतु दिल जिंदा रहती है।
अब भीड़ ने जान लिया है जादू की चालाक सफाई और उसका तोड़ भी।
तमाशा ज्यादा दिन नहीं चलता है वह भी जिंदा लाशों के साथ।
हमने तैयारी पूरी कर ली है उनके सम्मोहन को नाकाम करने की।
अब जिंदा लाशों से खून नहीं निकलेगा
क्योंकि जादू उलटने पर प्राणघातक होता है
यह जानकारी उन्हें भी है।
अब हमें इस जानू को सच से
जोडना होगा
जहां जिंदा लाशों से खून की जगह संकल्प का तेज सूर्य निकले
जिस की रोशनी में
ए काले जादूगर आज ही इसी दिन
पहचान लिया जाए
जो रोटी की जरूरत तमाशे से पूरी करते हैं
और अपनी चालाकी पर
हम से ही ताली फिट होते हैं
हरीश पाल
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