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Sunday, February 14, 2021

विधा-गजल

करती रही जिरह मगर बताया नहीं था,

नीरज कुमार द्विवेदी

जलती हुई शमां कभी बुझाया नहीं था।


करता रहा इन्तजार तिरे लौट आने का,

तुमने अक़्स अपना फिर दिखाया नहीं था।


दिल मे मिरे थी बसी तस्वीर तुम्हारी,

सो दिल किसी का ये अभी हो पाया नहीं था।


डरता रहा रुसवा कहीं तु हो ना बज्म में

यह दिल किसी को अपना मैं दिखाया नहीं था।


धब्बे पड़े हैं कितने चोट-ए-बेवफाई के

धड़का मगर कभी संभल ही पाया नहीं था।


दिल ये दिखा रहा हूँ मैं आज सभी को

कैद उसे पृष्ठ में कर पाया नहीं था।

नीरज कुमार दिवेदी

बस्ती-उत्तरप्रदेश

1 comment:

Sahityadwar said...

हार्दिक आभार आपका आदरणीय

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