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Tuesday, January 26, 2021

संविधान व खादी

यह देश हमारा विश्वगुरू था जो सोने की चिड़िया थी लूटा इसको विदेशियों ने जो जादू की पुड़िया थी। कितने सेनानी ने आगे बढ़ स्वतन्त्रता का आह्वान किया देश की आजादी खातिर निज प्राणों का बलिदान किया। अंग्रजों से सन सैंतालीस में देश हुआ था पूर्ण स्वतन्त्र लेकिन ढाई वर्ष बाद फिर अपना हिन्द बना गणतन्त्र। तारीख जनवरी की थी 26 सन था उन्नीस सौ पच्चास संविधान जब हुआ था लागू मना रहे थे सब उल्लास। विश्व के श्रेष्ठ संविधान में हिन्द का नम्बर एक है पढ़कर देखो कोई इसको बातें सब कितनी नेक हैं। संविधान ने हम सबको समता का इक आधार दिया सर्वधर्म सद्भाव का इसने खुद का मुख्य आधार दिया। आत्मा प्रथम राष्ट्रपति की बाबा साहेब का मन भी है संविधान जितने भी सबसे अधिक लचीलापन भी है। लेकिन संविधान की अब तो अस्मत भी उजाड़ी जाती है जब संसद के अन्दर बिल की प्रतियाँ फाड़ी जाती हैं। जनमानस ने तो संविधान का पग-पग पर ही वरण किया आरक्षण पर लेकिन खादी ने संविधान का अपहरण किया। आरक्षण की बूटी को बाबा ने बस दस ही साल दिया लेकिन खादी ने इसको देखो सत्तर साल सम्भाल दिया। परिवर्तन का अधिकार तुम्हें तो संग सबके समता करते न्यायालय से उठ लालच में पड़ तुम न मानवता हरते। बन्द करो तुम बिना जाँच किसी निरपराध को जेलों में ये तो वैसे हुआ कि जैसे मैच फिक्स हो खेलों में। ये कैसा गणतन्त्र हुआ कैसी हुई ये आजादी बिना किसी गलती के जीवन की हो जाये बर्बादी। संविधान रोने लगता है कभी तो न्याय व्यवस्था पर जब वो सोने लगती कहीं है अपराधी के घर जाकर। संविधान का उसके दिल में मान मिटाती है खादी संसद की दीवारों में जब नोट उड़ाती है यह खादी। नीरज कुमार द्विवेदी बस्ती-उत्तरप्रदेश

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