अपने कर्मों से धोखा सरेआम दे रहा दुनिया को
बदल गया इंसान मगर इल्जाम दे रहा दुनिया को
नाम स्वार्थ का जाने कैसे सबके मन मे समा गया
लोभ-मोह का दानव सबको अपने में ही रमा गया
लोभी बनकर के मानव बदनाम दे रहा दुनिया को
बदल गया इंसान मगर इल्जाम दे रहा दुनिया को
धन की केवल कदर हो गई,मन की कोई कदर नहीं
लाभ की खातिर बनते नाते, अपनेपन की कदर नहीं
लाभ उठाकर हानि सुबहो-शाम दे रहा दुनिया को
बदल गया इंसान मगर इल्जाम दे रहा दुनिया को
पहले सी वो फिजा नहीं है पहले सी वो हवा नहीं
पहले सा न प्रेम रहा अब, पहले सी वो दुआ नहीं
ईर्ष्या में जाने क्या-क्या अंजाम दे रहा दुनिया को
बदल गया इंसान मगर इल्जाम दे रहा दुनिया को
जितने भी वे मूल्य सभी थे जार-जार रोए सारे
मान घटा संस्कृतियों का है, संस्कार खोए सारे
फैशन में आधुनिकता का नाम दे रहा दुनिया को
बदल गया इंसान मगर इल्जाम दे रहा दुनिया को
विक्रम कुमार
मनोरा, वैशाली
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